Agriculture Loan Crisis: राजस्थान, जिसकी लगभग 60 प्रतिशत आबादी अपनी आजीविका के लिए सीधे तौर पर कृषि पर निर्भर है, इस वक्त एक गंभीर बैंकिंग और कृषि संकट का सामना कर रहा है। किसानों को मिलने वाले कृषि ऋण (Agriculture Loan) की वृद्धि दर खतरनाक रूप से धीमी हो रही है, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाने वाली कृषि विकास दर भी प्रभावित हुई है। यह वित्तीय वर्ष 2024-25 में चिंताजनक रूप से 2.5 प्रतिशत से भी नीचे चली गई है।
क्यों धीमी हुई कृषि ऋण की रफ़्तार?
बैंकिंग और कृषि क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि इस गिरावट का मुख्य कारण बैंकों की संकीर्ण ऋण नीति है। बैंक अपना जोखिम कम करने के लिए केवल पारंपरिक फसल ऋण (Crop Loans) देने पर ही जोर दे रहे हैं। वे कृषि से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे पशुपालन (Animal Husbandry), खाद्य प्रसंस्करण (Food Processing), और कृषि-बुनियादी ढांचे के लिए ऋण देने से कतरा रहे हैं।
इस प्रवृत्ति पर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने भी गहरी चिंता जताई है। मई में हुई राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति (SLBC) की बैठक में, आरबीआई के क्षेत्रीय निदेशक नवीन नांबियार ने इस सुस्ती को राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा बताया था। उन्होंने बैंकों को केवल फसल ऋण तक सीमित न रहकर कृषि के विविध क्षेत्रों में ऋण प्रवाह बढ़ाने का निर्देश दिया था।
बढ़ते NPA का दुष्चक्र और किसानों पर बोझ
एक तरफ जहां किसानों को नया लोन मिलना मुश्किल हो रहा है, वहीं दूसरी ओर बैंकों की गैर-निष्पादित संपत्ति (Non-Performing Assets – NPA), यानी ऐसा कर्ज जिसके वापस आने की उम्मीद बहुत कम है, लगातार बढ़ रही है।
- राजस्थान में बैंकों का कुल एनपीए अब बढ़कर ₹22,939 करोड़ हो गया है, जो पिछले साल की तुलना में ₹325 करोड़ अधिक है।
- सबसे चौंकाने वाला आंकड़ा यह है कि इस कुल NPA में 59.49% की भारी हिस्सेदारी अकेले कृषि क्षेत्र की है। इसके बाद 19.34% हिस्सेदारी के साथ MSME क्षेत्र आता है।
NPA के रेड जोन में राजस्थान के 8 जिले:
राज्य के आठ जिलों में NPA का स्तर खतरनाक रूप से ऊंचा है, जिनमें शामिल हैं:
- डीग: 18.55% (सर्वाधिक)
- धौलपुर: 11.60%
- फलौदी: 11.55%
- जैसलमेर: 11.47%
- करौली: 10.04%
- सवाई माधोपुर: 8.63%
- दौसा: 7.33%
- बारां: 6.57%
वित्तीय समावेशन पर बड़ा सवालिया निशान
एक तरफ जहां सरकार हर नागरिक को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ने के लिए वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) पर जोर दे रही है, वहीं राजस्थान में इसके ठीक उलट हो रहा है।
- लाखों खाते बंद: पिछले एक साल में राज्य में 1,26,296 बचत और चालू खाते बंद हो गए हैं, जो बेहद चिंताजनक है।
- काम नहीं कर रहे बैंकिंग एजेंट: ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने वाले बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट (BC) या एजेंट भी निष्क्रिय हैं। फिनो पेमेंट्स बैंक के 72% और केनरा बैंक के 54% बीसी काम ही नहीं कर रहे हैं, जिससे ग्रामीण आबादी तक बैंकिंग पहुंच नहीं पा रही है।
छोटे गांवों से मुंह मोड़ रहे हैं बैंक
बैंकों ने एक अजीबोगरीब दावा करते हुए कहा है कि 300 से कम आबादी वाले गांवों में अपनी शाखा खोलना या एजेंट (BC) नियुक्त करना उनके लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद नहीं है। उन्होंने समिति के माध्यम से केंद्र सरकार से अनुरोध किया है कि उन्हें ऐसे गांवों में बैंकिंग आउटलेट खोलने की शर्त से छूट दी जाए। यह कदम वित्तीय समावेशन की मूल भावना के खिलाफ है और ग्रामीण भारत को बैंकिंग व्यवस्था से और दूर कर सकता है।
कुल मिलाकर, राजस्थान का कृषि और बैंकिंग क्षेत्र एक बहुआयामी संकट से जूझ रहा है, जिसका सीधा असर राज्य के किसानों और समग्र आर्थिक विकास पर पड़ रहा है।