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Valmiki Jayanti : कौन था वो डाकू जो बना दुनिया का पहला कवि और लिख दिया रामायण जैसा महाग्रंथ?

Published On: October 4, 2025
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Valmiki Jayanti : कौन था वो डाकू जो बना दुनिया का पहला कवि और लिख दिया रामायण जैसा महाग्रंथ?
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Valmiki Jayanti : सनातन धर्म में आश्विन मास की पूर्णिमा (Ashwin Maas Purnima) का दिन अत्यंत पवित्र और विशेष महत्व रखता है। इस दिन जहां एक ओर आसमान से अमृत वर्षा करने वाली शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) का पावन पर्व मनाया जाता है, वहीं इसी दिन हम महर्षि वाल्मीकि की जयंती (Maharishi Valmiki Jayanti) भी मनाते हैं। यह वही महर्षि वाल्मीकि हैं, जिन्होंने हिंदू धर्म के पवित्रतम और विशालतम महाग्रंथों में से एक, रामायण (Ramayana) की रचना की थी। उनके ज्ञान और दूरदर्शिता के कारण ही उन्हें संसार का प्रथम कवि या ‘आदिकवि’ (Adikavi) भी कहा जाता है।

वाल्मीकि जयंती 2025: तारीख और शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि का आरंभ सोमवार, 6 अक्टूबर 2025 की दोपहर 12 बजकर 24 मिनट से होगा। यह तिथि मंगलवार, 7 अक्टूबर 2025 को सुबह 9 बजकर 17 मिनट पर समाप्त होगी।

इस कारण, पूर्णिमा का संयोग 6 और 7 अक्टूबर, दोनों ही दिन बन रहा है। शरद पूर्णिमा का व्रत और पूजन 6 अक्टूबर को किया जाएगा क्योंकि इस दिन चंद्रोदय के समय पूर्णिमा तिथि रहेगी। वहीं, हिंदू धर्म में अधिकांश जयंतियां उदयातिथि में मनाई जाती हैं, यानी जब सूर्योदय होता है, उस समय जो तिथि हो। इस नियम के अनुसार, महर्षि वाल्मीकि जयंती मंगलवार, 7 अक्टूबर 2025 को मनाना शास्त्र सम्मत होगा।

डाकू रत्नाकर से ‘आदिकवि’ बनने की चमत्कारी गाथा

रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि के जीवन की कहानी अत्यंत प्रेरक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महर्षि बनने से पहले उनका नाम रत्नाकर (Ratnakar) था और वह अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लूटपाट और हत्या जैसा जघन्य पाप करते थे।

एक दिन जंगल में उनकी भेंट देवर्षि नारद (Narada Muni) से हुई। रत्नाकर ने उन्हें भी लूटने का प्रयास किया, तब नारद मुनि ने उनसे एक प्रश्न पूछा, “तुम यह पाप कर्म किसके लिए करते हो?” रत्नाकर ने गर्व से उत्तर दिया, “अपने परिवार के लिए।” नारदजी ने कहा, “तो जाओ और अपने परिवार से पूछो कि क्या वे तुम्हारे इस पाप में भी भागीदार बनेंगे?”

जब रत्नाकर ने घर जाकर अपने परिवार के सदस्यों से यह प्रश्न पूछा, तो सभी ने साफ इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि वे केवल उसके कर्मों के फल (धन) के भागीदार हैं, पाप के नहीं। इस उत्तर ने रत्नाकर की आत्मा को झकझोर कर रख दिया। उनकी आंखें खुल गईं और उन्होंने पाप का मार्ग छोड़कर सत्य का मार्ग खोजने का निश्चय किया। वे वापस लौटकर देवर्षि नारद के चरणों में गिर पड़े। तब नारदजी ने उन्हें मुक्ति का मार्ग दिखाते हुए “राम-राम” नाम का जाप करने की सलाह दी। कहते हैं कि रत्नाकर इतने ध्यान में लीन हो गए कि वर्षों की तपस्या के दौरान उनके पूरे शरीर पर दीमकों ने अपनी बांबी (Valmik) बना ली। इसी कठोर तपस्या के बाद जब उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हुआ, तो बांबी से निकलने के कारण ही उनका नाम “वाल्मीकि” पड़ा।

रामायण की रचना और माता सीता के आश्रयदाता

महर्षि वाल्मीकि ने ही भगवान श्रीराम के सम्पूर्ण जीवन, उनके संघर्ष, त्याग, आदर्श और धर्म की स्थापना की अद्भुत कथा को छंदबद्ध कर महाकाव्य ‘रामायण’ के रूप में अमर कर दिया। यह महाकाव्य संस्कृत के सबसे प्राचीन और प्रतिष्ठित महाकाव्यों में से एक है, जिसमें लगभग 24,000 श्लोक हैं।

आगे चलकर, जब भगवान राम ने माता सीता का परित्याग किया, तब महर्षि वाल्मीकि ही थे जिन्होंने उन्हें अपने आश्रम में न केवल आश्रय दिया, बल्कि एक पिता की तरह उनकी देखभाल भी की। उनके दोनों तेजस्वी पुत्रों, लव और कुश (Luv and Kush) का जन्म और पालन-पोषण भी इसी आश्रम में हुआ। महर्षि वाल्मीकि ने ही लव और कुश को शस्त्र और शास्त्र का ज्ञान दिया और उन्हें संपूर्ण रामायण कंठस्थ कराई। उनकी यह रचना आज भी धर्म, कर्तव्य और आदर्श जीवन का मार्ग प्रशस्त करती है।


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