वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax – GST) चुकाने वाले लाखों करदाताओं (taxpayers) और व्यापारियों के लिए एक बहुत बड़ी और राहत भरी खबर आई है। पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने जीएसटी रिफंड (GST Refund) की समय-सीमा (limitation period) को लेकर एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि यदि कोई करदाता गलती से गलत हेड (wrong head) में टैक्स का भुगतान कर देता है, तो रिफंड का दावा करने की दो साल की समय-सीमा की गणना गलत भुगतान की तारीख से नहीं, बल्कि सही टैक्स के भुगतान की तारीख से शुरू होगी।
जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद और शैलेंद्र सिंह की बेंच का यह फैसला उन हजारों करदाताओं के लिए एक नजीर बनेगा, जिनके रिफंड के दावे केवल इस आधार पर खारिज कर दिए जाते थे कि उन्होंने गलत भुगतान की तारीख से दो साल के भीतर आवेदन नहीं किया था।
क्या था पूरा मामला?
यह मामला मेसर्स साई स्टील बनाम बिहार राज्य का है, जिसमें याचिकाकर्ता/करदाता (assessee) ने वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए अपने सभी जीएसटी रिटर्न दाखिल किए थे और नियमानुसार टैक्स का भुगतान भी कर दिया था।
- गलती कहां हुई?: करदाता ने कुछ लेन-देनों (transactions) को अंतर-राज्यीय (Intra-State) मानकर CGST और SGST के तहत टैक्स का भुगतान कर दिया था।
- ऑडिट में पकड़ी गई गलती: बाद में, जीएसटी विभाग के ऑडिट में यह पाया गया कि ये लेन-देन वास्तव में अंतर-राज्यीय (Inter-State) थे, और इन पर IGST का भुगतान किया जाना चाहिए था।
- सही टैक्स का किया भुगतान: विभाग के कहने पर, करदाता ने बाद में इन लेन-देनों पर IGST के तहत सही टैक्स का भुगतान कर दिया।
- रिफंड का दावा किया खारिज: जब करदाता ने CGST और SGST के तहत पहले से भुगतान किए गए गलत टैक्स के रिफंड के लिए आवेदन किया, तो विभाग ने BGST अधिनियम, 2017 की धारा 54 का हवाला देते हुए समय-सीमा समाप्त (limitation) होने के आधार पर उसके रिफंड आवेदन को खारिज कर दिया।
क्या थी विभाग और करदाता की दलीलें?
- विभाग का तर्क: राज्य सरकार ने तर्क दिया कि चूंकि जिस टैक्स का रिफंड मांगा जा रहा है, उसका भुगतान जनवरी 2018 में किया गया था, और रिफंड के लिए आवेदन 17.01.2024 को दायर किया गया था, इसलिए यह लगभग चार साल की देरी से था, और इसलिए यह समय-वर्जित (time-barred) है।
- करदाता का तर्क: करदाता ने कहा कि हालांकि विभाग ने यह पाया कि वह रिफंड का हकदार है, फिर भी उसका आवेदन खारिज कर दिया गया जो कि अनुचित है।
हाईकोर्ट ने क्यों दिया करदाता के पक्ष में फैसला?
पटना हाईकोर्ट की बेंच ने CGST अधिनियम, 2017 की धारा 77 और IGST अधिनियम की धारा 19 का गहन विश्लेषण किया।
- बेंच ने कहा कि विभाग यह मानकर गलती कर रहा है कि दो साल की अवधि की गणना जनवरी 2018 से की जाएगी जब SGST और CGST की राशि जमा की गई थी।
- बेंच की राय थी कि परिसीमा की अवधि की गणना करने की प्रासंगिक तारीख (relevant date) उस तारीख से शुरू होगी जब करदाता ने IGST अधिनियम के तहत टैक्स जमा किया था।
बेंच ने आगे कहा, “यदि विभाग के आदेश को बने रहने दिया जाता है, तो यह IGST अधिनियम की धारा 19 के साथ पठित BGST/CGST अधिनियम, 2017 की धारा 77 को और स्पष्टीकरण देने वाले सर्कुलर संख्या 162/18/2021-GST को निरर्थक (redundant) बनाने के समान होगा।”
ब्याज के साथ मिलेगा रिफंड
उपरोक्त टिप्पणियों के आधार पर, बेंच ने याचिका को स्वीकार कर लिया और फैसला सुनाया कि:
- करदाता जनवरी 2018 में SGST और CGST के मद में भुगतान की गई राशि का रिफंड पाने का हकदार है।
- साथ ही, उसे रिफंड के लिए आवेदन दाखिल करने की तारीख से तीन महीने बाद शुरू होने वाली तारीख से भुगतान की तारीख तक 6% प्रति वर्ष की दर से ब्याज भी मिलेगा।
यह फैसला करदाताओं के लिए एक बड़ी जीत है, जो यह सुनिश्चित करता है कि प्रक्रियात्मक गलतियों के कारण उनका पैसा सरकार के पास फंसा न रह जाए।