Skeletal Remains: कर्नाटक (Karnataka) के दक्षिण कन्नड़ (Dakshina Kannada) जिले की पुलिस (Police) हरकत में आ गई है, जब एक व्यक्ति ने धर्मस्थल (Dharmastala) में 1995 और 2014 के बीच काम करते हुए कथित तौर पर मारे गए और बलात्कार (Murdered and Raped) किए गए कई लोगों के कंकाल अवशेषों (Skeletal Remains) को खुद खोदकर निकालने का दावा किया है। शिकायतकर्ता (Complainant) ने पुलिस से पुलिस सुरक्षा (Police Protection) की मांग की है और उन जगहों को दिखाने की पेशकश की है जहां उसने कथित तौर पर शवों को दफनाया (Burying Bodies) था। यह खुलासा चौंकाने वाला है और राज्य की कानून व्यवस्था (Law and Order) पर गंभीर सवाल उठाता है। मैंगलोर की खबर (Mangalore News) इस सनसनीखेज मामले (Sensational Case) को उजागर करती है।
पुलिस ने शुक्रवार (11 जुलाई, 2025) को शिकायतकर्ता (Complainant) को मुख्य नागरिक न्यायाधीश (Principal Civil Judge) और न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (Judicial Magistrate First Class) के सामने पेश किया, जहां उसने दावा किया कि उसने सबूत के तौर पर कुछ कंकाल अवशेष (Skeletal Remains) पेश किए हैं। उन्होंने मजिस्ट्रेट (Magistrate) के सामने एक बयान (Statement) भी दर्ज कराया। पुलिस की कार्रवाई (Police Action) और न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) अब बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।
शिकायतकर्ता का सनसनीखेज दावा: 15 साल पुराने रहस्य का खुलासा!
शिकायतकर्ता (Complainant), जिसने दावा किया कि उसने धर्मस्थल (Dharmastala) में 1995 और दिसंबर 2014 के बीच एक सैनिटरी वर्कर (Sanitary Worker) के रूप में काम किया था, ने 3 जुलाई को शिकायत दर्ज कराई (Filed a Complaint)। उसने कहा कि उसे एक दशक पहले धर्मस्थल में कई शवों को दफनाने के लिए मजबूर (Forced to Bury Many Bodies) किया गया था। ये शव पुरुष और महिला दोनों थे, जिनके बारे में कथित तौर पर हत्या (Murdered) और बलात्कार (Raped) किया गया था। शिकायतकर्ता ने अदालत (Court) से अनुमति लेकर 4 जुलाई को पुलिस स्टेशन सिटी, फतेहाबाद (City Police Station, Fatehabad) में भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS) की धारा 211 (ए) के तहत एक अपराध (Offence) दर्ज कराया है।
जबकि शिकायतकर्ता की पहचान गुप्त (Identity Not Revealed) रखने के लिए पुलिस ने कदम उठाए थे, लेकिन शिकायतकर्ता के वकीलों (Advocates) द्वारा एफआईआर (FIR) पोस्ट करने और प्रेस नोट (Press Note) जारी करने से सोशल मीडिया (Social Media) पर उसकी पहचान को लेकर अनुमान लगने लगे हैं। शिकायतकर्ता की सुरक्षा को देखते हुए, पुलिस ने उसके नाम का खुलासा न करने का फैसला किया है। यह घटना कर्नाटक पुलिस (Karnataka Police) के लिए एक बड़ी चुनौती है।
पुलिस ने कहा कि शिकायतकर्ताओं के वकीलों की एक अलग जांच (Separate Inquiry by Deputy Superintendent of Police) शुरू की गई है। यह पुलिस जांच (Police Investigation) की निष्पक्षता (Fairness) सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। शिकायतकर्ता की सुरक्षा सक्षम प्राधिकारी (Competent Authority) द्वारा गुरुवार (10 जुलाई, 2025) को मंजूर की गई थी और यह तत्काल प्रभाव (Immediate Effect) से लागू हो गई है। यह नागरिकों की सुरक्षा (Protection of Citizens) के प्रति राज्य की प्रतिबद्धता (Commitment of the State) को दर्शाता है।
पुलिस ने कहा कि उन्होंने शिकायतकर्ता के वकीलों (Advocates) और ‘पंच’ गवाहों (Pan-witnesses) की उपस्थिति में शरीर के अंगों (Body Parts) को जब्त कर लिया। शिकायतकर्ता ने कहा कि यह आरोप लगाया गया था कि उसे ‘क्रूर तरीके से’ (Cruel Manner) हत्याओं का गवाह बनाया गया था। पुलिस अब उन लोगों की पहचान करने की कोशिश कर रही है जो इन अपराधों में शामिल थे। यह अपराध का रहस्य (Mystery of Crime) सुलझाने में एक अहम कदम है।
शिकायतकर्ता के वकील द्वारा एफआईआर (FIR) पोस्ट करने और सोशल मीडिया पर प्रेस नोट (Press Note) जारी करने के संबंध में, पुलिस का कहना है कि यह उनके क्लाइंट (Client) की पहचान उजागर (Reveal Identity) करने का काम कर सकता था, और इस पर एक अलग जांच (Separate Inquiry) शुरू की गई है। यह कानूनी प्रक्रिया (Legal Process) की गोपनीयता (Confidentiality) और सार्वजनिक प्रचार (Publicity) के बीच संतुलन (Balance) की आवश्यकता को दर्शाता है। भारत में कानून प्रवर्तन (Law Enforcement in India) इन परिस्थितियों से कैसे निपटेगी, यह देखना बाकी है।