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Paranthu Po Movie Review: बेतरतीब सफर में छिपी खूबसूरत सीख, देखें कैसे एक बाइक राइड बनी जीवन का रोमांच

Published On: July 4, 2025
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Paranthu Po Movie Review: बेतरतीब सफर में छिपी खूबसूरत सीख, देखें कैसे एक बाइक राइड बनी जीवन का रोमांच
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Paranthu Po Movie Review: ‘परंथू पो’ (Paranthu Po) फिल्म की कहानी एक पिता और उसके ‘जिद्दी बेटे’ (Demanding Son) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक साधारण ‘बाइक राइड’ (Bike Ride) के लिए निकलते हैं. लेकिन बेटे की ‘अनंत इच्छाओं’ (Endless Requests) से उनकी वह यात्रा एक ‘अप्रत्याशित रोमांच’ (Unexpected Journey) में बदल जाती है, जो ‘रंग-बिरंगी मुलाकातों’ (Colorful Encounters) और ‘कोमल खुलासों’ (Gentle Revelations) से भरपूर है. यह एक ‘हृदयस्पर्शी पारिवारिक फिल्म’ (Heartfelt Family Film) है जो ‘पिता-पुत्र के रिश्ते’ (Father-Son Relationship) की गहराई को दर्शाती है.

‘परंथू पो’ मूवी रिव्यू: एक पिता का संघर्ष और जीवन का अप्रत्याशित जादू

फिल्म ‘परंथू पो’ की शुरुआत गोकुल (शिव – Shiva) से होती है, जो अपनी पत्नी ग्लोरी (ग्रेस एंटनी – Grace Antony) के कोयंबटूर (Coimbatore) में टेक्सटाइल एक्सपो में काम करने के दौरान ‘सिंगल पेरेंटिंग’ (Single Parenting) के एक और दिन से गुजरने की कोशिश कर रहा है. फिल्म के क्रेडिट रोल होने तक, वह अपने बेटे अंबु (मितुल रयान – Mitul Ryan) की सनक के कारण आधे ग्रामीण इलाकों में घसीटा जा चुका होता है, और किसी तरह, यह ‘थका देने वाली अराजकता’ (Exhausting Chaos) कुछ ‘अद्भुत’ (Wonderful) में बदल जाती है.

फिल्म का ‘जादू’ (Magic) इस बात में निहित है कि यह कितनी ‘स्वाभाविक रूप से’ (Naturally) सामने आती है. जो एक ‘नियमित आउटिंग’ (Routine Outing) के रूप में शुरू होता है, वह ईएमआई कलेक्टर (EMI Collector) से बचने का रास्ता बन जाता है, जो फिर एक पूर्ण ‘साहसिक यात्रा’ (Full-blown Adventure) में बदल जाता है – ऐसा इसलिए नहीं कि किसी ने इसकी योजना बनाई थी, बल्कि इसलिए कि अंबु लगातार मांगें करता रहता है और गोकुल हां कहता रहता है. “चलो यहां चलते हैं.” “ठीक है.” “अब वहां चलते हैं.” “ठीक है.” प्रत्येक सहमति उन्हें एक ऐसी यात्रा में गहराई तक खींचती जाती है जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी. यह ‘भारतीय सिनेमा’ (Indian Cinema) में ‘अनियोजित यात्राओं’ (Unplanned Journeys) की एक बेहतरीन मिसाल है.

निर्देशक राम का ‘शानदार निर्देशन’ और संगीत का योगदान

निर्देशक राम (Director Ram) ‘पितृ आज्ञापालन’ (Paternal Compliance) की इस कॉमेडी को ‘हल्के फुल्के अंदाज’ (Light Touch) और ‘निर्बाध संगीत संगत’ (Seamless Musical Accompaniment) के साथ प्रस्तुत करते हैं. गाने सिर्फ दृश्यों को ‘बढ़ावा’ (Enhance Scenes) नहीं देते – वे ‘हास्य’ (Humor) में सह-साजिशकर्ता बन जाते हैं. जब बारिश उन्हें आश्रय लेने के लिए मजबूर करती है, या जब वे अंबु की किसी और अचानक मांग को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे होते हैं, तो साथ वाला स्कोर इन पलों को बिल्कुल सही तरीके से ‘उजागर’ (Punctuates) करता है.

संतोष धयाननिधि (Santhosh Dhayanidhi) का संगीत और मदन कार्की (Madhan Karky) के बोल (Lyrics) एक साथ मिलकर काम करते हैं, जो ‘संगीत के अंतरालों’ (Musical Interludes) का निर्माण करते हैं जो साधारण घटनाओं को ‘यादगार’ (Memorable) बना देते हैं, जिससे फिल्म ऐसा महसूस कराती है कि वह नाच रही है, भले ही कोई वास्तव में नाच नहीं रहा हो. यह ‘दक्षिण भारतीय फिल्म’ (South Indian Film) ‘संगीत की ताकत’ (Power of Music) को बखूबी दर्शाती है.

यात्रा के दौरान अनूठी मुलाकातें और जीवन की सीख

रास्ते में होने वाली हर मुलाकात अपनी ‘हास्य की छाया’ (Shade of Comedy) जोड़ती है. एक ‘बारिश भरी रात’ (Rain-soaked Night) में वे एक ‘सड़क किनारे रहने वाले’ (Street Dweller) के साथ शरण लेते हैं जो खुद को “सम्राट” (Emperor) कहता है, जिससे गोकुल को अपनी पत्नी के साथ फोन कॉल के दौरान “सम्राट लॉज” का ‘निराशाजनक तात्कालिकता’ (Desperate Improvisation) करनी पड़ती है. अपनी ‘पुरानी स्कूल क्रश’ (Old School Crush) वनिता (अंजली – Anjali) से मिलना एक और ‘नया दृष्टिकोण’ (New Perspective) लाता है: ‘धनी जीवन’ (Life of Riches) के बजाय, वह जो उसके पास है और जहां वह रहती है, उससे ‘संतुष्ट’ (Satisfied) है.

अंबु जीवन के इन ‘अन्य विकल्पों’ (Other Choices) का नमूना लेता है, जिसका गोकुल पर भी ‘निशान’ (Mark) पड़ता है. युवा जना के फार्महाउस (Farmhouse) का दौरा – अंबु की “क्रश” – पिता और बेटे के लिए एक अलग तरह की कॉमेडी (Comedy) प्रदान करता है. हर मोड़ पर, दोस्त और अजनबी (Friends and Strangers) समान रूप से ‘मेहमाननवाज’ (Hospitable) और ‘स्वागत योग्य’ (Welcoming) हैं. और जब पल अपने चरम पर पहुंचता है, तो आपके पास सही बोल वाला गाना होता है.

कलाकारों का दमदार प्रदर्शन: शिव और मितुल रयान की जुगलबंदी

शिव (Shiva) ने ‘थके हुए पिता’ (Exhausted Father) की भूमिका को ‘स्वाभाविक’ (Natural) रूप से निभाया है, बिना इसे ‘नियमित’ (Routine) महसूस कराए. उनका ‘कॉमिक टाइमिंग’ (Comic Timing) ‘लाजवाब’ (Impeccable) है – चाहे वह अपने बेटे के साथ ‘हताशापूर्वक बातचीत’ (Desperately Negotiating) कर रहे हों, अपनी पत्नी के साथ नियमित चेक-इन कॉल के बीच ‘सिगरेट’ (Cigarettes) निकाल रहे हों, या किसी और ‘अप्रत्याशित मांग’ (Unexpected Demand) पर प्रतिक्रिया दे रहे हों. यह एक ऐसा प्रदर्शन है जो आहें, कंधे उचकाना और पूरी तरह से ‘कैलिब्रेटेड डबल-टेक’ (Calibrated Double-takes) पर आधारित है जो हर हंसी को ‘हासिल’ (Land Every Laugh) करता है. मितुल रयान (Mitul Ryan) अंबु को ‘प्रामाणिक रूप से मांग करने वाला’ (Authentically Demanding) महसूस कराते हैं, बिना ‘असहनीय’ (Unbearable) हुए – वह बस एक बच्चा है जो जानता है कि उसे क्या चाहिए और उसके पास एक ऐसा पिता है जो मना नहीं कर सकता.

ग्रेस एंटनी (Grace Antony) अपनी ‘व्यावहारिक गर्मजोशी’ (Practical Warmth) के साथ फिल्म को ‘ग्राउंड’ (Grounds) करती हैं, जिससे उनकी फोन बातचीत एक ‘वास्तविक विवाह’ (Real Marriage) की तरह महसूस होती है – समान रूप से स्नेह (Affection) और ‘कोमल धोखे’ (Gentle Deception) से भरी. सहायक कलाकार (Supporting Cast) अपनी यात्रा के हर पड़ाव को ‘समृद्ध’ (Enriches) करते हैं: बालाजी शक्तिवेल (Balaji Sakthivel) गोकुल के पिता के रूप में ‘पीढ़ीगत घर्षण’ (Generational Friction) लाते हैं, जबकि अंजली (Anjali), आजू वर्गीज (Aju Varghese), और विजय येसुदास (Vijay Yesudas) प्रत्येक ‘यादगार क्षणों’ (Memorable Moments) का योगदान करते हैं जो मुलाकातों को ‘वास्तविक’ (Lived-in) महसूस कराते हैं. यह ‘तमिल फिल्म’ (Tamil Film) ‘उत्कृष्ट अभिनय’ (Excellent Acting) का प्रदर्शन करती है.

फिल्म का सार: नियंत्रण छोड़ने से मिलती है खुशी

धीरे-धीरे जो उभर कर आता है वह ‘पालन-पोषण’ (Parenting) या ‘बचपन की स्वतंत्रता’ (Childhood Freedom) के बारे में एक संदेश नहीं है, बल्कि कुछ अधिक ‘सूक्ष्म’ (Subtle) है. सभी ‘हास्यपूर्ण दुर्घटनाओं’ (Comic Mishaps) और ‘संगीत अंतरालों’ (Musical Interludes) के माध्यम से, गोकुल की ‘अनंत समायोजन’ (Endless Accommodations) और अंबु की ‘अनंत मांगों’ (Endless Requests) के माध्यम से, फिल्म दिखाती है कि कभी-कभी सबसे अच्छी चीजें तब होती हैं जब हम हर चीज को ‘नियंत्रित करने की कोशिश’ (Trying to Control Everything) करना बंद कर देते हैं.

जब अंबु एक पहाड़ी की चोटी पर जाता है और घर लौटने से इनकार करता है, तो यह ‘विद्रोह’ (Rebellion) से कम और उस ‘खुले स्थान और प्रकृति’ (Open Space and Nature) के सभी का एक ‘स्वाभाविक निष्कर्ष’ (Natural Conclusion) अधिक लगता है. फिल्म अपनी ‘शांत गति’ (Unhurried Pace) से 2+ घंटे तक चलती है, लेकिन गोकुल की तरह, आप खुद को इसके साथ चलते हुए पाते हैं. एकांबरम (Ekambaram) की ‘सिनेमैटोग्राफी’ (Cinematography) यात्रा को ‘प्राकृतिक प्रकाश’ (Natural Light) और ‘मिट्टी के रंगों’ (Earthy Tones) में रंग देती है. कुछ सेट-पीस (Set-pieces) अपनी स्वागत अवधि से अधिक समय तक टिके रहते हैं: ईएमआई बाइक पीछा (EMI Bike Chase), या माता-पिता और बेटे के बीच का ‘चरमोत्कर्ष’ (Climax) थोड़ा ‘खिंचा हुआ’ (Dragged) महसूस हुआ.

लेकिन राम को भरोसा है कि छोटे-छोटे पलों का संचय – ‘मजेदार’ (Funny), ‘हृदयस्पर्शी’ (Touching), ‘संगीत से भरपूर’ (Musically Enhanced) – कुछ ‘अर्थपूर्ण’ (Meaningful) में बदल जाएगा, बिना किसी को जोर से कहे. ‘परंथू पो’ जीवन के ‘अनियोजित रास्तों’ (Unplanned Detours) में अपनी ‘ताल’ (Rhythm) पाती है. यह एक ऐसी फिल्म है जो समझती है कि कैसे सबसे छोटे रोमांच सबसे बड़े प्रभाव छोड़ सकते हैं, खासकर जब एक बच्चे की ‘जिद्दी आँखों’ (Insistent Eyes) से देखा जाए और एक पिता के ‘थके हुए लेकिन इच्छुक दिल’ (Weary But Willing Heart) से फिल्टर किया जाए.


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