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Krishna Chhathi 2025: जानें शुभ मुहूर्त, पूजा की सही विधि और क्यों लगाया जाता है कढ़ी-भात का भोग

Published On: August 21, 2025
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Krishna Chhathi 2025: जानें शुभ मुहूर्त, पूजा की सही विधि और क्यों लगाया जाता है कढ़ी-भात का भोग
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भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्री कृष्ण (Lord Krishna) के जन्मोत्सव यानी जन्माष्टमी (Janmashtami) का पर्व पूरे देश में धूम-धाम से मनाया जाता है। लेकिन कृष्ण जन्मोत्सव का यह उत्सव यहीं समाप्त नहीं होता। भगवान के जन्म के ठीक छठवें दिन, जैसे किसी नवजात शिशु का जन्मोत्सव मनाया जाता है, ठीक उसी तरह बाल गोपाल का ‘छठी’ (Chhathi) पूजन किया जाता है। यह परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है, जब नंद बाबा और मैया यशोदा ने अपने ‘लाला’ का छठी समारोह पूरे गोकुल में बड़े ही धूमधाम से मनाया था।

इस साल, 21 अगस्त, 2025, गुरुवार को कान्हा जी की छठी मनाई जा रही है। हालांकि, कुछ लोग उदयातिथि के अनुसार 22 अगस्त, शुक्रवार को भी कान्हा की छठी मना रहे हैं। इस बार का यह दिन और भी खास है क्योंकि 21 अगस्त को गुरु पुष्य योग (Guru Pushya Yoga) का दुर्लभ संयोग भी बन रहा है, जो पूजा-पाठ और मांगलिक कार्यों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।

क्यों मनाई जाती है कान्हा की छठी? क्या है इसका महत्व?

हिंदू धर्म में, जब भी किसी घर में शिशु का जन्म होता है, तो माना जाता है कि सूतक काल के कारण घर में कुछ समय के लिए अशुद्धता हो जाती है। जन्म के छठवें दिन, बच्चे और माँ दोनों को स्नान कराकर, नए वस्त्र पहनाकर और पूजा-पाठ करके इस सूतक को समाप्त किया जाता है और घर को शुद्ध किया जाता है। इसी दिन बच्चे का नामकरण भी किया जाता है।
ठीक इसी परंपरा का पालन करते हुए, भगवान कृष्ण को भी एक नवजात शिशु का रूप मानकर, जन्म के छठे दिन उनकी छठी पूजी जाती है। इस दिन लड्डू गोपाल (Laddu Gopal) को स्नान कराकर शुद्ध किया जाता है, उन्हें नए वस्त्र पहनाए जाते हैं, और छठी माता की पूजा की जाती है। यह उत्सव वात्सल्य और प्रेम का प्रतीक है।

कैसे की जाती है कान्हा की छठी की पूजा? जानें पूरी विधि

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में कान्हा की छठी मनाने की परंपरा थोड़ी अलग-अलग हो सकती है, लेकिन पूजा का मूल भाव एक ही है। यहां पूजा की एक विस्तृत विधि दी गई है:
1. मालिश और स्नान:

  • यह सबसे अनोखी और प्यारी रस्म है। इस दिन भक्त अपने लड्डू गोपाल को एक छोटे शिशु की तरह मानते हैं।
  • सबसे पहले, उनकी कोमलता से घी से मालिश की जाती है।
  • इसके बाद, उन्हें पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) और फिर कच्चे दूध से स्नान कराया जाता है। अंत में गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराया जाता है।

2. श्रृंगार:

  • स्नान कराने के बाद, लड्डू गोपाल को पीले रंग के नए वस्त्र पहनाए जाते हैं, क्योंकि पीला रंग भगवान कृष्ण का प्रिय माना जाता है।
  • उनका मोरपंख, बांसुरी, मुकुट, और सुंदर आभूषणों से विशेष श्रृंगार किया जाता है।

3. तिलक और पूजन:

  • इसके बाद, उन्हें चंदन और केसर का तिलक लगाया जाता है।
  • अपने लड्डू गोपाल को फल, फूल, धूप, और दीप अर्पित करें।

4. काजल लगाना और भोग:

  • शाम के समय, नजर से बचाने के लिए उन्हें काजल लगाया जाता है।
  • इसके बाद छठी मैया की पूजा की जाती है और उन्हें कढ़ी-भात, माखन, मिश्री, और पंजीरी आदि का विशेष भोग लगाया जाता है।

5. नामकरण और सोहर गीत:

  • कई जगहों पर इसी दिन बाल गोपाल का नामकरण भी किया जाता है और उन्हें प्यारे-प्यारे नामों से पुकारा जाता है।
  • महिलाएं इस अवसर पर पारंपरिक सोहर (जन्म के गीत) गाती हैं, जिससे घर का माहौल उत्सवमय हो जाता है।
  • अंत में महिलाएं लड्डू गोपाल पर पैसे या उपहार न्योछावर करती हैं और फिर उनकी आरती उतारी जाती है।

यह उत्सव सिर्फ एक पूजा नहीं, बल्कि भगवान के बाल रूप के प्रति भक्तों के गहरे प्रेम और वात्सल्य का प्रदर्शन है, जो हमें याद दिलाता है कि भक्ति का सबसे सरल और सुंदर रूप प्रेम है।

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