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 Dalai Lama: मेरा उत्तराधिकारी ‘भीतरी भिक्षु मंडल’ ही चुनेगा, जानें ‘शांति और सियासत’ का पूरा गणित

Published On: July 5, 2025
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Dalai Lama: मेरा उत्तराधिकारी 'भीतरी भिक्षु मंडल' ही चुनेगा, जानें 'शांति और सियासत' का पूरा गणित
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Dalai Lama: बहुत कम उत्सव ही धर्मशाला (Dharamshala) की पहाड़ियों को ‘दलाई लामा’ (Dalai Lama) के जन्मदिन की तरह गुलजार करते हैं. लेकिन इस साल, जैसे ही तिब्बती ‘आध्यात्मिक नेता’ (Spiritual Leader) रविवार को 90 वर्ष (90th Birthday) के होने वाले हैं, भिक्षुओं (Monks) और भक्तों (Devotees) की भीड़ इस पर्वतीय भारतीय शहर (Mountainous Indian City) में उमड़ पड़ी है. यह ‘उत्सुकता का माहौल’ (Mood of Anticipation) पूरी तरह महसूस किया जा सकता है. ‘हिमाचल प्रदेश’ (Himachal Pradesh) स्थित धर्मशाला ‘निर्वासित तिब्बत सरकार’ (Tibetan Government in Exile) का केंद्र है और बौद्ध अनुयायियों (Buddhist Followers) के लिए ‘पवित्र स्थान’ (Holy Place) है.

वर्षों से, दलाई लामा ने वादा किया था कि अपने 90वें जन्मदिन के आसपास वह अपने ‘पुनर्जन्म’ (Reincarnation) के बारे में एक ‘बहुप्रतीक्षित घोषणा’ (Long-awaited Announcement) करेंगे. आखिरकार, बुधवार को ‘तिब्बती भिक्षुओं’ (Tibetan Monks) और नेताओं को प्रसारित एक वीडियो (Video Broadcast) में, उन्होंने बताया कि ‘भविष्य में क्या होगा’ (What the Future Would Hold). यह तिब्बती समुदाय (Tibetan Community) और ‘चीनी सरकार’ (Chinese Government) के बीच एक ‘क्रूर उत्तराधिकार युद्ध’ (Ruthless Succession Battle) के डर के बीच आया, जो दशकों से दलाई लामा की संस्था (Institution of the Dalai Lama) को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है, जिन्हें ‘तिब्बती बौद्ध धर्म’ (Tibetan Buddhism) में ‘उच्चतम गुरु’ (Highest Teacher) के रूप में पूजा जाता है. ‘दलाई लामा उत्तराधिकार’ (Dalai Lama Succession) का मुद्दा ‘वैश्विक भू-राजनीति’ (Global Geopolitics) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है.

14वें दलाई लामा: परंपरा के अनुसार उत्तराधिकारी का चयन

14वें दलाई लामा, ‘तेनज़िन ग्यात्सो’ (Tenzin Gyatso) ने पुष्टि की कि वह अपनी मृत्यु तक इस भूमिका में बने रहेंगे. फिर, सदियों की परंपरा (Centuries of Tradition) के अनुसार, उनका पुनर्जन्म होगा, और केवल उनका ‘आंतरिक चक्र’ (Inner Circle) – निकट सहयोगी भिक्षुओं का एक ‘ट्रस्ट’ (Trust) – उनके ‘उत्तराधिकारी’ (Successor) का पता लगाने का ‘एकमात्र अधिकार’ (Sole Authority) रखेगा; एक अक्सर लंबी प्रक्रिया जिसमें उनके ‘पुनर्जन्म की आत्मा’ (Reborn Spirit) वाले बच्चे का पता लगाना होता है.

दलाई लामा ने अपने भिक्षुओं से कहा, “किसी और को इस मामले में हस्तक्षेप (Interfere) करने का ऐसा कोई अधिकार नहीं है.” यह ‘दलाई लामा का संदेश’ (Dalai Lama’s Message) उनकी संस्था की स्वतंत्रता को रेखांकित करता है.

यह घोषणा वर्षों की अटकलों (Speculation) को समाप्त करती है कि, चीनी हस्तक्षेप (Chinese Interference) को रोकने के प्रयास में, दलाई लामा पुनर्जन्म का एक ‘वैकल्पिक तरीका’ (Alternative Mode) पेश कर सकते हैं, जैसे कि उनके ‘आध्यात्मिक सार’ (Spiritual Essence) को एक ऐसे उत्तराधिकारी को स्थानांतरित करना जिसे उनके जीवित रहते हुए भी खोजा जा सकता था. तिब्बती प्रवासी (Tibetan Diaspora) में कई लोगों की बड़ी चिंता के लिए, उन्होंने यह भी संकेत दिया था कि शायद वे ‘बिल्कुल भी पुनर्जन्म नहीं लेंगे’ (May Not Reincarnate at All).

चीन को सीधी चुनौती: बीजिंग का स्वर्ण कलश नियम बनाम तिब्बती परंपरा

दलाई लामा का नवीनतम बयान चीन में ‘कम्युनिस्ट पार्टी’ (Communist Party in China) का एक स्पष्ट ‘अवज्ञा’ (Defiance) था, जिसका लंबे समय से यह विचार रहा है कि अगले दलाई लामा का फैसला करने का अधिकार केवल उसी के पास है और उसने इस अधिकार को ‘चीनी कानून’ (Chinese Law) में भी निहित कर दिया है. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के ‘उत्तराधिकार नियम’ (Succession Rules) तिब्बती धार्मिक प्रथाओं से बिल्कुल उलट हैं.

हालांकि, ‘भारत-चीन संबंधों’ (Indo-Chinese Relations) और ‘बौद्ध धर्म’ (Buddhism) के विद्वान तांसें सेन (Tansen Sen) ने टिप्पणी की कि दलाई लामा के संदेश का स्वर उनके कुछ पिछले बयानों की तुलना में अधिक ‘कूटनीतिक’ (Diplomatic Tone) था. पहले के लेखन में, उन्होंने कहा था कि 15वें दलाई लामा का जन्म “स्वतंत्र दुनिया” (Free World) में होगा – जिसका अर्थ चीन के बाहर लिया जाता था – लेकिन इस बार उन्होंने उसे दोहराया नहीं.

सेन ने कहा, “मैं इसे एक ‘बहुत रणनीतिक रूप से संभाली गई घोषणा’ (Strategically Handled Announcement) के रूप में देखता हूं जिसने चीन को बहुत ज्यादा ‘परेशान’ (Ruffling China’s Feathers) करने से परहेज किया.” “दलाई लामा न केवल एक धार्मिक नेता हैं, बल्कि वह एक ‘चतुर विचारक’ (Shrewd Thinker) भी हैं और मुझे लगता है कि उन्हें एहसास है कि ‘बड़े मुद्दे’ (Larger Issues) दांव पर हैं, खासकर यह कि वह भू-राजनीतिक (Geopolitically) रूप से भारत और चीन के बीच फंसे हुए हैं.”

हालांकि, इस मुद्दे पर चीन की ‘संवेदनशीलता’ (Sensitivity) दलाई लामा के बयान का सभी चीनी या तिब्बती मीडिया (Tibetan Media) से अनुपस्थित होने से स्पष्ट थी. लंदन विश्वविद्यालय (Soas University of London) के सोआस में ‘तिब्बती इतिहास’ (Tibetan History) के विद्वान रॉबर्ट बर्नेट (Robert Barnett) ने कहा, “चीन के प्रचार प्रबंधकों (Propaganda Managers) को यह खबर तिब्बतियों या यहां तक कि चीनी लोगों तक पहुंचने देने में बहुत ‘संकोच’ (Reticent) लगता है.” “संभवतः ऐसा इसलिए है क्योंकि चीनी नेताओं को दलाई लामा के लिए ‘जनता के समर्थन’ (Popular Outpouring of Support) का डर है, या वे जवाब देने पर सहमत होने के लिए ‘संघर्ष’ (Struggling to Agree) कर रहे हैं.” यह ‘चीन में सूचना नियंत्रण’ (Information Control in China) की नीति को दर्शाता है.

तिब्बत पर चीन का कब्जा और दलाई लामा का निर्वासन

चीन ने 1950 में तिब्बत के ‘स्वायत्त क्षेत्र’ (Autonomous Region of Tibet) पर आक्रमण किया और उस पर नियंत्रण कर लिया. 1959 में तिब्बतियों द्वारा एक ‘विफल विद्रोह’ (Failed Uprising) के बाद, चीन ने दलाई लामा को गिरफ्तार करने की धमकी दी – जिन्होंने ‘धार्मिक और राजनीतिक नेता’ (Religious and Political Leader) दोनों के रूप में काम किया – जिससे उन्हें भारत (India) में ‘निर्वासन’ (Exile) के लिए मजबूर होना पड़ा.

हिमालय (Himalayas) के पार अपने ‘खतरनाक पलायन’ (Perilous Escape) के बाद, अप्रैल 1959 में दलाई लामा ने तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) से मुलाकात की, जिन्होंने अपनी ही सरकार के भीतर बहुत ‘विरोध’ (Much Opposition) के बावजूद घोषणा की कि तिब्बती आध्यात्मिक नेता को भारत में “शांति से रहने की अनुमति दी जानी चाहिए.”

तब से, दलाई लामा, अन्य तिब्बती धार्मिक नेताओं, नागरिकों और निर्वासित सांसदों (Parliamentarians in Exile) के साथ, ‘हिमालय के ऊँचे पहाड़ों’ (High in the Himalayan Mountains) में धर्मशाला में अपना ‘राजनीतिक और धार्मिक मुख्यालय’ (Political and Religious Headquarters) स्थापित कर चुके हैं.

अपनी ‘चौकी’ (Outpost) से, दलाई लामा पिछले 66 वर्षों से तिब्बती कारण (Tibetan Cause) और समुदाय (Community) के लिए एक धार्मिक नेता और एक ‘अथक और अत्यधिक प्रभावी वैश्विक वकील’ (Tireless and Highly Effective Global Advocate) दोनों रहे हैं. उन्होंने ‘दलाई लामा की संस्था’ पर या ‘उत्तराधिकार प्रक्रिया’ में किसी भी तरह से चीन द्वारा ‘हस्तक्षेप’ करने के आह्वान का ‘मुखर विरोध’ (Vocally Resisted) किया है.

ग्रेटर तिब्बत (Greater Tibet) के भीतर, जो 6 मिलियन लोगों का घर है, चीनी अधिकारियों ने दलाई लामा के ‘प्रभाव को कुचलने’ (Crush the Influence) की कोशिश करने के लिए तेजी से ‘कठोर उपाय’ (Draconian Measures) और ‘सेंसरशिप’ (Censorship) लागू की है, जिसमें उनकी छवियों पर प्रतिबंध (Banning Images) भी शामिल है.

बीजिंग (Beijing) ने दलाई लामा को “भिक्षु के कपड़े में भेड़िया” (Wolf in Monk’s Clothing) बताया है और उन्हें एक ‘असंतुष्ट’ (Dissident) और ‘अलगाववादी’ (Separatist) के रूप में देखता है, भले ही उन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता (Full Independence) के बजाय चीन के भीतर अधिक तिब्बती ‘स्वायत्तता’ (Tibetan Autonomy) की वकालत की हो.

चीनी प्रयासों को ‘व्यापक रूप से विफल’ (Widely Seen to Have Failed) माना जाता है, और जैसे-जैसे दलाई लामा की ‘अंतर्राष्ट्रीय प्रोफ़ाइल’ (International Profile) बढ़ी है – उनके पास ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ (Nobel Peace Prize) और लाखों भक्त हैं, जिनमें दुनिया के कुछ सबसे बड़े सेलिब्रिटी (Biggest Celebrities) भी शामिल हैं – वह पहले से कहीं अधिक पूज्य (More Revered Than Ever) बने हुए हैं.

तिब्बत पर ‘पूर्ण एकरूपता’ (Complete Homogeneity) थोपने के चीनी प्रयासों में एक ‘निरंतर कांटा’ (Constant Thorn) के रूप में उनकी उपस्थिति का मतलब है कि अधिकारियों ने उनकी मृत्यु के बाद क्या होता है उसे नियंत्रित करने के लिए तेजी से ‘दृढ़ संकल्प’ (Increasingly Determined) दिखाया है. इस हफ्ते दलाई लामा की घोषणा के बाद एक बयान में – जो केवल अंग्रेजी (English) में प्रकाशित हुआ था – चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग (Mao Ning) ने कहा कि उनके उत्तराधिकारी को “सुनहरे कलश (Golden Urn) से बहुत कुछ निकालकर चुना जाना चाहिए और ‘केंद्रीय सरकार’ (Central Government) द्वारा अनुमोदित (Approved) होना चाहिए.” यह ‘तिब्बत समस्या’ (Tibet Issue) पर चीन का ‘आधिकारिक रुख’ (Official Stance) है.

दो उत्तराधिकारियों की संभावना और भारत की भूमिका

विश्लेषकों (Analysts) ने व्यापक रूप से सहमति व्यक्त की है कि दलाई लामा की मृत्यु के बाद ‘सबसे संभावित परिदृश्य’ (Most Likely Scenario) यह है कि दो उत्तराधिकारियों को नियुक्त किया जाएगा; एक को तिब्बती भिक्षुओं (Tibetan Monks) द्वारा, परंपरा के अनुसार, शायद चीन के बाहर स्थित (Outside China) और ‘निर्वासित तिब्बती समुदाय’ (Tibetan Community in Exile) द्वारा मान्यता प्राप्त (Recognized), और दूसरा चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (Chinese Communist Party) द्वारा चीन के भीतर से चुना गया (Selected from Within China). यह ‘डबल दलाई लामा’ (Double Dalai Lama) की स्थिति बना सकता है.

दशकों से, धर्मशाला में दलाई लामा की उपस्थिति और भारत द्वारा उन्हें प्रदान की गई ‘स्वतंत्र आवाजाही’ (Free Movement) भारत-चीन संबंधों (Indo-Chinese Relations) में ‘तनाव का स्रोत’ (Source of Tension) बनी हुई है. फिर भी, 2020 के बाद से, जब ‘सीमा पर तनाव’ (Border Tensions) हिंसक झड़पों (Violent Skirmishes) में बदल गया, ऐसा लगा कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के नेतृत्व वाली भारत सरकार (Indian Government) ने तिब्बत मुद्दे को चीन पर ‘दबाव का एक सीधा साधन’ (Direct Form of Leverage) के रूप में देखना शुरू कर दिया है. चीन ने जोर दिया है कि दलाई लामा के पुनर्जन्म में हस्तक्षेप करने वाले किसी भी देश को ‘प्रतिबंधित’ (Sanctioned) किया जाएगा – एक संदेश जिसे भारत पर लक्षित (Directed at India) देखा गया.

परंपरा से एक ‘उल्लेखनीय विचलन’ (Notable Break from Convention) में, इस सप्ताह भारत के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री (Minister of Minority Affairs), किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju), खुद एक बौद्ध (Buddhist), ने सार्वजनिक रूप से कहा कि दलाई लामा का पुनर्जन्म “स्थापित परंपरा (Established Convention) और दलाई लामा की अपनी इच्छा (Wish of the Dalai Lama Himself) के अनुसार तय किया जाना है. उनके अलावा किसी और को यह तय करने का अधिकार नहीं है.”

चीन के विदेश मंत्रालय (Chinese Foreign Ministry) ने तुरंत भारत से “तिब्बत के मुद्दों का उपयोग चीन के ‘घरेलू मामलों’ (Domestic Affairs) में हस्तक्षेप करने के लिए बंद करने” का आह्वान किया.

दलाई लामा का स्वस्थ भविष्य और जटिल चुनौतियाँ

भारतीय सरकार में तिब्बत के पूर्व सलाहकार अमिताभ माथुर (Amitabh Mathur) ने कहा कि इसकी ‘अत्यधिक संभावना’ (Highly Likely) थी कि दलाई लामा के कार्यालय ने ‘नई दिल्ली’ (New Delhi) को पुनर्जन्म की घोषणा के बारे में सूचित किया होगा, और रिजिजू का बयान वरिष्ठ मंत्रालयों (Senior Ministries) से परामर्श के बिना नहीं दिया गया होगा. माथुर ने कहा, “यह निश्चित रूप से भारत द्वारा पहले कही गई बातों से ‘कहीं अधिक’ (Above and Beyond) है.”

उन्होंने सुझाव दिया कि दलाई लामा की मृत्यु के बाद ‘भू-राजनीतिक चुनौतियाँ’ (Geopolitical Challenges) और अधिक जटिल (More Complicated) होने की संभावना है, खासकर यदि तिब्बती अधिकारी चीन की अपनी संभावित पसंद की अवहेलना करते हुए भारत के भीतर उनके पुनर्जन्म का पता लगाते हैं.

तिब्बती अधिकारियों ने पुष्टि की है कि चीनी (Chinese) के साथ ‘अनौपचारिक बैक चैनल’ (Unofficial Back Channels) खुले हुए हैं और दलाई लामा 600 साल पुरानी तिब्बती बौद्ध संस्था (600-year-old Tibetan Buddhist Institution) को चीनी राजनीतिक हितों (Chinese Political Interests) द्वारा ‘हाइजैक’ (Hijacked) होने से रोकने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे थे. माथुर ने कहा, “वह इन चीजों को एक ‘बहुत ही व्यावहारिक नजरिए’ (Very Practical Lens) से देख रहे हैं.” “यह मत भूलिए, दलाई लामा आध्यात्मिक मामलों के साथ-साथ ‘स्टेटक्राफ्ट’ (Statecraft) में भी उतने ही पारंगत हैं.”

बहरहाल, जैसे ही उन्होंने अपने जन्मदिन की पूर्व संध्या (Eve of His Birthday) पर प्रार्थनाएं (Prayers) कीं, तिब्बती नेता – जो ‘अच्छे स्वास्थ्य’ (Good Health) में दिखाई दिए – ने जोर दिया कि वह ‘जल्द ही अपनी मृत्यु’ (His Death Coming Any Time Soon) की ‘परिकल्पना नहीं’ (Did Not Foresee) करते. उन्होंने कहा, “मुझे उम्मीद है कि मैं ‘और 30 या 40 साल जीवित रहूंगा’ (To Live Another 30 or 40 Years).” यह बयान उनके अनुयायियों (Devotees) को राहत देगा और ‘दलाई लामा की उम्र’ (Dalai Lama’s Age) को लेकर चिंताएं कम करेगा.

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