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 Cybercrime India: पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट से बड़ी राहत, ‘प्रो-पाकिस्तान’ AI वीडियो मामले में बुजुर्ग आरोपी को मिली बेल

Published On: July 9, 2025
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Cybercrime India: पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट से बड़ी राहत, 'प्रो-पाकिस्तान' AI वीडियो मामले में बुजुर्ग आरोपी को मिली बेल
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 Cybercrime India: पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने फतेहाबाद (Fatehabad) के 65 वर्षीय अस्थिरोग विशेषज्ञ (Bone-setter) को नियमित जमानत (Regular Bail) दे दी है, जिसे कथित तौर पर एक प्रो-पाकिस्तान (Pro-Pakistan) AI-जनरेटेड वीडियो (AI-generated Video) फेसबुक (Facebook) पर साझा करने के आरोप में गिरफ्तार (Arrested) किया गया था। इस वीडियो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) की ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) के दौरान आलोचना (Critical) की गई थी। यह मामला डिजिटल सामग्री की जिम्मेदारी (Responsibility of Digital Content)साइबर कानूनों (Cyber Laws) और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Expression) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है।

न्यायमूर्ति एन एस शेखावत (Justice N S Shekhawat) ने 7 जुलाई को जमानत याचिका (Bail Plea) स्वीकार करते हुए देखा कि मुश्ताक अहमद (Mushtaq Ahmed) एक वरिष्ठ नागरिक (Senior Citizen) हैं जिनकी स्वास्थ्य समस्याएं (Health Complications) गंभीर हैं और वे 17 मई से हिरासत (Custody) में थे। अदालत ने ध्यान दिया कि उनसे बरामद करने के लिए कोई सामग्री शेष (No Material Left to be Recovered) नहीं थी और जांच लगभग पूरी (Investigation Nearly Complete) हो चुकी थी।

न्यायमूर्ति शेखावत (Justice Shekhawat) ने अपने आदेश में कहा, “याचिकाकर्ता की आगे की हिरासत (Further Custody) किसी भी उपयोगी उद्देश्य (Useful Purpose) की पूर्ति नहीं करेगी।” यह न्यायिक निर्णय (Judicial Decision) न्याय प्रणाली (Justice System) की मानवता और उसके कार्यभार पर भी प्रकाश डालता है।

कैसे शेयर हुआ था ‘विवादित’ वीडियो? अस्थिरोग विशेषज्ञ ने दी सफाई

इस मामले की बहस वरिष्ठ अधिवक्ता (Senior Advocate) बिपन घई (Bipan Ghai) ने अधिवक्ता निखिल घई (Nikhil Ghai) और पारस तलवार (Paras Talwar) के साथ की, जिन्होंने यह प्रस्तुत किया कि प्रश्नगत वीडियो (Video in Question) याचिकाकर्ता द्वारा बनाया नहीं गया था, बल्कि गलती से उसके द्वारा फॉरवर्ड (Mistakenly Forwarded) कर दिया गया था। पुलिस ने, उन्होंने कहा, पहले ही उनके फेसबुक खाते (Facebook Account), कॉल रिकॉर्ड (Call Records), पासपोर्ट (Passport) और बैंक विवरणों (Bank Details) की जांच कर ली थी और कोई संदिग्ध विदेशी लेनदेन (Suspicious Foreign Transactions) या पाकिस्तान की हालिया यात्रा (Recent Visits to Pakistan) नहीं पाई थी।

घई (Ghai) ने अदालत को बताया, “याचिकाकर्ता केवल 1990 तक अपने बीमार रिश्तेदारों (Ailing Relatives) से मिलने पाकिस्तान गया था और पिछले 35 सालों में वापस नहीं आया है,” जांच एजेंसी (Investigating Agency) द्वारा किए गए पासपोर्ट सत्यापन (Passport Verification) का हवाला देते हुए।

अहमद (Ahmed), जिनके खिलाफ कोई अन्य आपराधिक मामला (Criminal Cases) नहीं है, को 15 मई को फतेहाबाद (Fatehabad) के सिटी पुलिस स्टेशन (City Police Station) में दर्ज एक प्राथमिकी (FIR) में भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS) की धारा 152 और 197(1)(d) के तहत मामला दर्ज किया गया था। शिकायत (Complaint) के अनुसार, वीडियो में भारतीय सेना (Indian Army) के बलिदानों (Sacrifices) का मजाक उड़ाया गया था और पाकिस्तान की प्रशंसा की गई थी।

BNS की धारा 152 और सुप्रीम कोर्ट की दिशानिर्देशें: नए देशद्रोह कानून पर सवाल

बचाव पक्ष (Defence) ने तर्क दिया कि invoke किए गए अपराध (Offences), जिसमें बीएनएस (BNS) की नई देशद्रोह-समतुल्य धारा 152 (Sedition-equivalent Section 152 of BNS) भी शामिल है, लागू नहीं थे। घई ने एस जी वोम्बतकेरे मामले (S G Vombatkere case) में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के अंतरिम निर्देशों (Interim Directions) की ओर ध्यान आकर्षित किया, जहां अब-निलंबित देशद्रोह कानून (Suspended Sedition Law – धारा 124-ए आईपीसी) के तहत कार्यवाही को स्थगित (Kept in Abeyance) कर दिया गया है। घई ने प्रस्तुत किया, “बीएनएस की धारा 152 भौतिक रूप से समान (Materially Similar) है और इसकी संवैधानिक वैधता (Constitutional Validity) को चुनौती दी गई है।” यह कानूनी बहस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech) और राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) के बीच संतुलन पर केंद्रित है।

अदालत को यह भी सूचित किया गया कि अहमद (Ahmed) की 2 जुलाई को बाईपास सर्जरी (Bypass Surgery) होनी थी, और उन्हें तत्काल postoperative care (सर्जरी के बाद की देखभाल) की आवश्यकता थी, जो, याचिकाकर्ताओं (Petitioners) ने कहा, जेल में उपलब्ध (Not Available in Jail) नहीं थी।

चिकित्सा रिकॉर्ड (Medical Records) प्रस्तुत करते हुए, अहमद ने एक “बिना शर्त माफी” (Unconditional Apology) मांगी और अदालत को आश्वासन (Assured) दिया कि वह ऐसे आचरण (Conduct) को दोहराएगा नहीं। उनके वकीलों ने कहा, “देश या सेना को बदनाम करने का कोई इरादा नहीं था। वीडियो अनजाने में साझा किया गया था।

राज्य (State) की जमानत (Bail) के विरोध को खारिज करते हुए, अदालत ने निर्देश दिया कि अहमद (Ahmed) को ट्रायल (Trial) या ड्यूटी मजिस्ट्रेट (Duty Magistrate) के समक्ष पर्याप्त जमानत बांड (Adequate Bail Bonds) प्रस्तुत करने पर रिहा किया जाए। यह निर्णय भारतीय न्यायिक प्रणाली (Indian Judicial System) में मानवीयता और निष्पक्षता (Fairness) को दर्शाता है। साइबर अपराध भारत (Cyber Crime India) में एक गंभीर चिंता है, और इस मामले में न्यायपालिका ने अपनी भूमिका निभाई।

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