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प्रज्वल रेवन्ना पर यौन शोषण का आरोप साबित, 26 गवाहों और 180 सबूतों से खुली पोल

Published On: August 1, 2025
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प्रज्वल रेवन्ना पर यौन शोषण का आरोप साबित, 26 गवाहों और 180 सबूतों से खुली पोल
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राजनीति के गलियारों से एक बेहद शर्मनाक खबर सामने आई है। कर्नाटक की एक विशेष अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा (H.D. Deve Gowda) के पोते और पूर्व हासन सांसद प्रज्वल रेवन्ना (Prajwal Revanna) को 47 वर्षीय घरेलू सहायिका के बलात्कार के मामले में दोषी करार दिया है। यह फैसला उस वक्त आया है जब प्रज्वल के खिलाफ चार बलात्कार के मामले लंबित हैं, और यह उनमें से एक मामले में आया है।

अदालत का अहम फैसला: 376 (k), 376 (n) IPC समेत कई धाराओं में दोषी
विशेष न्यायाधीश ने प्रज्वल रेवन्ना को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376(2)(k) (किसी ऐसे व्यक्ति के साथ बलात्कार करना जिस पर उसका नियंत्रण या शक्ति हो), 376(2)(n) (बार-बार उसी महिला के साथ बलात्कार करना), 354A (यौन उत्पीड़न), 354B (महिला को निर्वस्त्र करना), 354C (व्यभिचार), 506 (आपराधिक धमकी), और 201 (सबूतों को मिटाना) के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66E (निजता का उल्लंघन) के तहत दोषी पाया है।

सजा का ऐलान आज:
अदालत कल (शनिवार) को सजा के बिंदु पर सुनवाई करेगी और सजा का ऐलान करेगी। यह फैसला यौन उत्पीड़न के मामलों में न्याय की लंबी लड़ाई को दर्शाता है।

पूरा मामला और ट्रायल की प्रक्रिया:
विशेष लोक अभियोजक अशोक नायक (Ashok Nayak) ने ‘TOI’ को बताया कि इस मुकदमे में, जो इसी साल 2 मई को शुरू हुआ था, 26 गवाहों से जिरह की गई। मुकदमे को पूरा करने के लिए 38 स्थगन/तारीखें लगीं, जिसमें दलीलें भी शामिल थीं। अभियोजन पक्ष ने 26 गवाहों की जांच की और 180 दस्तावेज़ों को सबूत (exhibits) के तौर पर पेश किया।

पीड़ित की पहचान गोपनीय:
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, यौन उत्पीड़न के मामलों में पीड़ितों की गोपनीयता बनाए रखने के लिए पीड़ित की पहचान उजागर नहीं की गई है

CBI पर गंभीर आरोप:
यह मामला तब और भी संवेदनशील हो गया जब एक पीड़िता के पिता ने CBI पर “रेपिस्ट को छिपाने” (CBI HIDING RAPISTS) का आरोप लगाया और सच सामने लाने की कसम खाई। इन आरोपों ने मामले की गंभीरता और जटिलता को और बढ़ा दिया है।

यह फैसला न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो यह दर्शाता है कि किसी भी पद या राजनीतिक प्रभाव के बावजूद, कानून से ऊपर कोई नहीं है।

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