Premanand Maharaj: अपने सरल और सहज प्रवचनों से लाखों लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने वाले संत प्रेमानंद महाराज जी अक्सर अपने सत्संगों में माता-पिता और बच्चों से जुड़े विषयों पर गहरा मार्गदर्शन करते हैं। वे बच्चों को अच्छी आदतें सिखाने, उनका पढ़ाई में मन लगाने और जीवन को सही दिशा देने जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं। इसी कड़ी में, उन्होंने हाल ही में अपने एक प्रवचन में आज के बच्चों में पाई जाने वाली एक सबसे बड़ी कमी की ओर ध्यान आकर्षित किया है, जो हर माता-पिता के लिए विचारणीय है।
“पढ़े-लिखे तो खूब हैं, लेकिन नम्रता और विनय नहीं है” – प्रेमानंद महाराज
प्रेमानंद महाराज जी ने सोशल मीडिया पर जारी एक वीडियो में बड़ी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज की शिक्षा प्रणाली में आधुनिकता तो है, लेकिन आध्यात्मिकता और संस्कारों का गहरा अभाव है। इसी आध्यात्मिक शिक्षा की कमी के कारण आज के बच्चों में ‘विनय’ (Humility) और ‘नम्रता’ (Politeness) जैसे गुणों का लोप होता जा रहा है।
उन्होंने कहा, “आज की पढ़ाई में आधुनिकता तो है, लेकिन आध्यात्मिकता का अभाव है। आध्यात्मिक शिक्षा न होने के कारण बच्चों में विनय की कमी होती जा रही है। पढ़े-लिखे बच्चे भी नम्रता से दूर होते जा रहे हैं।“
“जितना ज्यादा जो पढ़ा है, उतना ही उसमें घमंड ज्यादा”
महाराज जी ने आजकल की शिक्षा के एक कड़वे सच को उजागर करते हुए कहा कि स्थिति इतनी चिंताजनक हो गई है कि जो जितना अधिक पढ़ा-लिखा और ग्रेजुएट होता है, उसमें उतना ही अधिक अहंकार (Ego) दिखाई देता है।
वे आगे कहते हैं, “अब तो स्थिति यह हो गई है कि जितना कोई ग्रेजुएट होता है, उतना ही उसमें अहंकार दिखाई देता है। जबकि होना यह चाहिए कि जितना अधिक कोई पढ़ा-लिखा हो, उतना ही वह सरल और विनम्र बने।” उनके अनुसार, सच्ची शिक्षा व्यक्ति को ज्ञान के साथ-साथ विनम्रता भी सिखाती है।
क्या है एक पढ़े-लिखे और सभ्य व्यक्ति की असली पहचान?
संत प्रेमानंद जी ने एक सरल उदाहरण से समझाया कि एक पढ़े-लिखे व्यक्ति की असली पहचान उसकी डिग्री या ज्ञान से नहीं, बल्कि उसके आचरण और सभ्यता से होती है।
वे कहते हैं, “फिर पढ़े-लिखे व्यक्ति की पहचान भी तो यही है कि वह सभ्य और सरल हो। अब, जैसे- मान लीजिए, आप कहीं गाड़ी या बस में सफर कर रहे हैं और वहां कोई बड़ा-बूढ़ा खड़ा है, तो आप उसे कहें- ‘आप बैठ जाइए दादा जी, हम खड़े हो जाएंगे।’ तभी तो लगेगा कि यह वास्तव में पढ़ा-लिखा और सभ्य इंसान है।“
आध्यात्मिक शिक्षा ही है एकमात्र समाधान
महाराज जी का मानना है कि आज समाज से सभ्यता और विनय जैसे गुण धीरे-धीरे गायब हो रहे हैं। पढ़े-लिखे लोग तो बहुत हैं, लेकिन उनमें ये गुण नहीं दिखते। इस कमी को केवल और केवल आध्यात्मिक शिक्षा (Spiritual Education) ही दूर कर सकती है। आध्यात्मिकता बच्चों को जड़ों से जोड़ती है और उन्हें बड़ों का सम्मान करना, विनम्र रहना और दूसरों के प्रति दया का भाव रखना सिखाती है।
माता-पिता कैसे दें बच्चों को अच्छे संस्कार? “रोज 10 मिनट बुलवाएं राधा-राधा”
सत्संग के दौरान जब एक महिला ने पूछा कि नादान बच्चों के कल्याण के लिए क्या माता-पिता द्वारा किया गया नाम-जप उन्हें लाभ पहुंचा सकता है? इस पर महाराज जी ने कहा, “हां, बिल्कुल परिवर्तन होगा।“
उन्होंने माता-पिता को सलाह दी कि वे बच्चों को प्यार और दुलार से नाम-जप करवाएं।
- प्यार से फुसलाएं: बच्चों को डांटकर नहीं, बल्कि प्यार से फुसलाकर नाम-जप के लिए प्रेरित करें। अगर वे एक दिन भी आपकी बात मान लेते हैं, तो यह एक अच्छी शुरुआत है।
- खेल-खेल में भजन: बच्चों को खेल-खेल में भजन गाना या भगवान का नाम लेना सिखाया जा सकता है।
- याद दिलाते रहें: बच्चों को भोग का लालच देकर कहें, ‘तुम्हारे लिए बाल भोग बन रहा है, तब तक तुम राधा-राधा जपो। नहीं जपोगे तो भोग नहीं मिलेगा।’ अगर वे खेलने में व्यस्त हो जाएं, तो उन्हें प्यार से फिर याद दिलाएं।
प्रेमानंद महाराज जी का यह संदेश आज के हर माता-पिता के लिए एक मार्गदर्शक की तरह है, जो यह बताता है कि आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ बच्चों को आध्यात्मिक संस्कार देना कितना आवश्यक है, ताकि वे ज्ञानी होने के साथ-साथ एक विनम्र और अच्छे इंसान भी बन सकें।