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Hobosexuality:

Published On: October 1, 2025
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भारत में तेजी से फैल रहा ‘होबोसेक्सुअलिटी‘ का खतरनाक जाल, कहीं आप तो नहीं अगला शिकार?

Hobosexuality: प्रीमियम घरों की मांग के कारण भारत के बड़े शहरों में प्रॉपर्टी की कीमतें 14% तक बढ़ीं।

दिल्ली-एनसीआर और बेंगलुरु में घर की कीमतों में आया जबरदस्त उछाल।

महंगाई के बीच 1BHK घरों की मांग आसमान पर।

क्या आपको इन हेडलाइंस में कोई समानता नजर आती है? यह समझने के लिए आपको रियल एस्टेट एक्सपर्ट होने की जरूरत नहीं है कि भारत के महानगरों में प्रॉपर्टी की कीमतें अब तक के अपने उच्चतम स्तर पर हैं। और जब घर खरीदना एक सपना बन जाए, तो किराए में बढ़ोतरी होना भी लाजिमी है। इसका सीधा मतलब यह है कि आज के दौर में अकेले रहना या एक छोटे से फ्लैट से थोड़े बड़े फ्लैट में अपग्रेड करना भी शहरों में रह रहे कई लोगों के लिए एक नामुमकिन सा ख्वाब बनता जा रहा है।

अब, आसमान छूती इन घर की कीमतों को शहर के गहरे अकेलेपन के साथ मिलाकर देखिए, और आपको ‘होबोसेक्सुअलिटी’ (Hobosexuality) जैसी एक चौंकाने वाली और अप्रत्याशित हकीकत के लिए एक सटीक माहौल मिल जाता है। इस थोड़े से बेबाक और अजीब लगने वाले शब्द के पीछे एक कड़वी सच्चाई छिपी है: लोग अब प्यार के लिए कम और सिर पर एक छत के लिए ज्यादा रिश्तों में आ रहे हैं। इस तरह के रिश्ते में लोग अक्सर बदले में बिना कुछ खास दिए, आर्थिक और भावनात्मक रूप से अपने पार्टनर पर पूरी तरह निर्भर हो जाते हैं।

क्या है यह ‘होबोसेक्सुअलिटी’ का नया चलन?

‘होबोसेक्सुअलिटी’ एक ऐसे रिश्ते को कहते हैं जिसमें कोई इंसान सिर्फ घर, रहने की जगह और आर्थिक सहारे (financial support) के लिए किसी के साथ रोमांटिक रिश्ते में आता है। इसमें इंसान प्यार की आड़ में अपने पार्टनर का घर, पैसा और संसाधन तो शेयर करता है, लेकिन रिश्ते में अपना कोई खास योगदान नहीं देता।

हालांकि, ‘होबोसेक्सुअलिटी’ शब्द अपने आप में किसी क्लिकबेट जैसा लग सकता है, लेकिन हकीकत में इसे हल्के में लेना एक बड़ी भूल होगी, क्योंकि यह शहरी भारत में चुपचाप और बहुत तेजी से अपनी जड़ें जमा रहा है।

अब सिर्फ पश्चिमी देशों का शब्द नहीं रहा ‘होबोसेक्सुअलिटी’

‘होबोसेक्सुअल’ शब्द मूल रूप से पश्चिमी इंटरनेट कल्चर में उभरा था, जिसका इस्तेमाल आम बोलचाल की भाषा में ऐसे इंसान के लिए किया जाता था जो खास तौर पर रहने की जगह पाने के लिए डेटिंग करता है।

लेकिन अब यह भारत में भी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। आप पूछेंगे क्यों? बेशक, इसके लिए आसमान छूते किराए और प्रॉपर्टी की कीमतें जिम्मेदार हैं (और कुछ हद तक वे लोग भी जो बिना मेहनत के आरामदायक जीवन जीना चाहते हैं)। मुंबई, दिल्ली और बेंगलुरु जैसे महानगरों में जहां घर खरीदना या किराए पर लेना बहुत महंगा है, वहां डेटिंग का चलन तेजी से इस तरह के लेन-देन पर आधारित होता जा रहा है।

Gateway of Healing की मनोचिकित्सक और संस्थापक-निदेशक, डॉ. चांदनी तुगनैत कहती हैं, “हम देख रहे हैं कि लोग, खासकर महिलाएं, ऐसे पार्टनर्स से जुड़ रही हैं जो रिश्ते में भावनात्मक, आर्थिक और लॉजिस्टिक मामलों में बहुत कम योगदान देते हैं, लेकिन उनके जीवन में बेहिसाब जगह घेरे होते हैं। ऊपरी तौर पर तो ये रिश्ते बहुत रोमांटिक लगते हैं, लेकिन अक्सर इनमें एक छिपा हुआ शक्ति असंतुलन (power imbalance) होता है, जहां एक साथी को दूसरे की तुलना में कहीं ज्यादा फायदा हो रहा होता है।”

क्या यह एक भावनात्मक जाल है?

अंकिता (नाम बदला हुआ), जो अपने लेट 30s में एक सफल एंटरप्रेन्योर हैं, अपनी कहानी याद करते हुए कहती हैं, “शुरू में यह बहुत रोमांटिक लगा। मुझे लगा कि हम प्यार में हैं, इसलिए मैं उसे अपने घर पर रखने के लिए तुरंत तैयार हो गई। लेकिन हकीकत यह थी कि किराया मैं दे रही थी और पूरे रिश्ते का बोझ भी अकेले ही उठा रही थी।”

समय बीतने के साथ, अंकिता ने एक परेशान करने वाला पैटर्न देखा। वह कहती हैं, “वो किराया कभी शेयर नहीं करता था, हां, कभी-कभी कुत्ते को टहलाने या खाना बनाने जैसे छोटे-मोटे काम कर देता था। लेकिन जब मुझे भावनात्मक रूप से उसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती थी, तो वो कहीं नजर नहीं आता था।”

यह एक ऐसा भावनात्मक जाल है जिसे पहली नजर में पहचानना वाकई मुश्किल होता है। इसके लिए कुछ हद तक, हमारा आधुनिक डेटिंग कल्चर भी जिम्मेदार है, जहां पार्टनर प्यार की बौछार (love bombing) करता है और इतनी तेजी से नजदीकियां बढ़ाता है कि प्यार और चालाकी के बीच की रेखा ही धुंधली हो जाती है। ऐसे में किसी भी खतरे के संकेत (Red Flags) को पहचानना बहुत मुश्किल हो जाता है।

‘होबोसेक्सुअलिटी’ हमारे समाज का कड़वा आईना है

‘होबोसेक्सुअलिटी’ उस समाज का आईना है जिसमें हम रहते हैं। अगर आपको इस बात पर यकीन नहीं होता, तो Deloitte की एक रिपोर्ट पर नजर डालिए, जिसका शीर्षक है- ‘2025 Gen Z and Millennial Work Survey’। यह सर्वे रिपोर्ट बताती है कि 2025 में 50 प्रतिशत से ज्यादा मिलेनियल और जेन जी कर्मचारी बड़ी मुश्किल से अपना महीने का खर्चा चला पा रहे हैं और उनकी सेविंग लगभग न के बराबर है।

महानगरों में सिर्फ रहने का खर्च अक्सर एक व्यक्ति की आय का 40 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा निगल जाता है। उदाहरण के लिए, मुंबई में रहने वाला एक व्यक्ति अपनी आय का कम से
कम 48 प्रतिशत सिर्फ घर पर खर्च करेगा।

डॉ. तुगनैत कहती हैं, “इसके साथ ही घर बसाने का सांस्कृतिक दबाव, संघर्ष का महिमामंडन, और कुछ लोगों में दूसरों पर एहसान करने की भावना… इन सबको जोड़ लें तो एक ऐसा माहौल तैयार होता है जो होबोसेक्सुअलिटी को पनपने का मौका देता है। यह और भी खतरनाक इसलिए है क्योंकि अक्सर इसे भक्ति और समर्पण का जामा पहनाया जाता है। आप सिर्फ किराया नहीं दे रहे होते, बल्कि साथ रहने के एक झूठे भ्रम के लिए भी पैसे दे रहे होते हैं।”

‘होबोसेक्सुअलिटी’ की निंदा करने का मतलब संघर्ष कर रहे लोगों को शैतान बताना नहीं है। इसका मतलब है भावनात्मक सुविधा पर नहीं, बल्कि समानता, सम्मान और जागरूकता पर आधारित रिश्ते बनाना।

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