Mahalaxmi Puja: हिन्दू धर्म में पितृपक्ष (Pitru Paksha) का समय अपने पूर्वजों को याद करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए समर्पित होता है। इन 16 श्राद्ध के दिनों में किया गया तर्पण और पिंडदान पितरों को तृप्ति प्रदान करता है और वे प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। पितृपक्ष में पड़ने वाली अष्टमी तिथि (Ashtami Tithi) का विशेष महत्व है, क्योंकि इस दिन न केवल पितरों की पूजा की जाती है, बल्कि यह महालक्ष्मी व्रत (Mahalaxmi Vrat) का समापन दिवस भी होता है।
इस प्रकार, पितृपक्ष की अष्टमी एक ऐसा दुर्लभ और शुभ संयोग बनाती है जब आप अपने पितरों को तृप्त करने के साथ-साथ धन, वैभव और समृद्धि की देवी, माँ लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त कर सकते हैं। यदि इस दिन विधि-विधान और वास्तु के अनुसार पूजा की जाए, तो पितरों की शांति और धन-धान्य की इच्छा, दोनों ही निश्चित रूप से पूरी होती हैं।
पितृपक्ष अष्टमी पर महालक्ष्मी पूजा: पितृ शांति और धन-धान्य की होगी वर्षा
हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से 16 दिवसीय महालक्ष्मी व्रत का आरंभ होता है और इसका समापन आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि (पितृपक्ष अष्टमी) को होता है। वर्ष 2025 में, महालक्ष्मी व्रत 31 अगस्त से शुरू होकर 14 सितंबर को संपन्न होगा। इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा और पितरों का तर्पण एक साथ करने का विशेष विधान है।
पूजा से पहले इन महत्वपूर्ण बातों का रखें ध्यान
- पूजा की दिशा: माँ महालक्ष्मी की पूजा हमेशा घर के उत्तर-पूर्व कोने, यानी ईशान कोण (Ishan Kon) में ही करें। यह देवताओं का स्थान माना जाता है।
- तर्पण की दिशा: वहीं, पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध करते समय आपका मुख दक्षिण दिशा (South Direction) की ओर होना चाहिए, क्योंकि यह पितरों की दिशा मानी जाती है।
- वस्त्रों का रंग: पूजा करते समय लाल, गुलाबी या पीले रंग के स्वच्छ वस्त्र धारण करना अत्यंत शुभ होता है।
- दान का महत्व: पूजा और तर्पण के बाद, प्रसाद और भोजन किसी ब्राह्मण, गाय या किसी जरूरतमंद व्यक्ति को अवश्य दान करें। इससे पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
महालक्ष्मी पूजा की सामग्री (Pooja Materials)
- पूजा स्थल के लिए: साफ चौकी, लाल या पीला वस्त्र।
- देवी की स्थापना: माँ महालक्ष्मी की मूर्ति, प्रतिमा या चित्र।
- कलश स्थापना: कलश, शुद्ध जल, आम के पत्ते (आम्रपत्र), नारियल, सुपारी, सिक्का, अक्षत (बिना टूटे चावल)।
- पूजा की वस्तुएं: हल्दी, कुमकुम, रोली, घी का दीपक, धूप, अगरबत्ती।
- पुष्प और भोग: लाल पुष्प (विशेषकर कमल का फूल), तुलसी के पत्ते, पंचमेवा, दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल (पंचामृत के लिए), खीर, पुआ, फल आदि।
- पितरों के लिए: पका हुआ सात्विक भोजन (विशेषकर कच्चे चावल, दाल, सब्जी, रोटी), तिल, कुश और जल।
सरल और संपूर्ण पूजा विधि (Step-by-Step Pooja Vidhi)
1. शुद्धिकरण और संकल्प:
सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थान को गंगाजल से पवित्र करें। हाथ में जल लेकर संकल्प लें:
संकल्प: “मैं (अपना गोत्र) गोत्र का (अपना नाम), पितृपक्ष अष्टमी के दिन महालक्ष्मी पूजन और पितृ तर्पण कर रहा/रही हूं। कृपया देवी लक्ष्मी और मेरे पितृगण प्रसन्न होकर मुझ पर कृपा करें।”
2. कलश स्थापना:
एक कलश में जल, सुपारी, अक्षत और सिक्का डालें। उस पर आम के पत्ते रखें और फिर ऊपर नारियल स्थापित करें। कलश पर स्वास्तिक बनाकर उसे देवी लक्ष्मी की मूर्ति के दाहिनी ओर रखें।
3. गणेश पूजन:
किसी भी पूजा से पहले, भगवान गणेश का पूजन अनिवार्य है।
मंत्र: “ॐ गं गणपतये नमः” का 11 बार जाप करें।
4. महालक्ष्मी पूजन:
- सबसे पहले माँ लक्ष्मी को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल) और फिर शुद्ध जल से स्नान कराएं।
- उन्हें वस्त्र, आभूषण, रोली, अक्षत, और पुष्प अर्पित करें। कमल का फूल और श्रीयंत्र चढ़ाना विशेष फलदायी होता है।
- घी का दीपक और धूप जलाएं।
- कमल गट्टे की माला से इस मंत्र का 108 बार जाप करें:
मंत्र: “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः”
5. आरती और नैवेद्य:
माँ महालक्ष्मी की कपूर से आरती करें। खीर, पुआ, फल या मिश्री का भोग लगाएं।
6. पितृ तर्पण और श्राद्ध:
- अब, दक्षिण दिशा की ओर मुख करके कुशासन पर बैठें।
- हाथों में कुश, काले तिल और जल लेकर अपने पितरों का ध्यान करते हुए उन्हें तर्पण दें।
- पितरों के लिए बनाए गए सात्विक भोजन को एक पत्ते पर निकालकर उसे भी दक्षिण दिशा में रखें और अपने पितरों से भोजन ग्रहण करने का आग्रह करें।
मंत्र: “ॐ पितृदेवताभ्यो स्वधा नमः” (यह कहते हुए 3 बार जल अर्पित करें)
7. अंतिम प्रार्थना:
अंत में, माँ लक्ष्मी और अपने पितरों से हाथ जोड़कर प्रार्थना करें: “हे मातः महालक्ष्मी! मेरे कुल-पितृगण प्रसन्न हों, उनकी आत्मा तृप्त हो और मेरे घर में सदैव सुख-समृद्धि, शांति और धन-धान्य का वास हो।”
इस विधि से की गई पूजा निश्चित रूप से आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएगी और आपको देवी लक्ष्मी के साथ–साथ आपके पितरों का भी भरपूर आशीर्वाद प्राप्त होगा।