लंबे समय बाद बड़े पर्दे पर वापसी कर रहे हैंडसम हीरो नारा रोहित (Nara Rohith), अपनी नई फैमिली एंटरटेनर ‘सुंदरकांड’ (Sundarakanda) के साथ दर्शकों का दिल जीतने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। वेंकटेश निम्मलपूडी के निर्देशन में बनी यह फिल्म एक ऐसी कहानी है जो आपको हंसाएगी, रुलाएगी और अंत में एक प्यारी सी मुस्कान के साथ सिनेमाघर से बाहर भेजेगी। क्या नारा रोहित इस फिल्म से अपनी सफलता का सूखा खत्म कर पाएंगे? आइए, जानते हैं इस मूवी रिव्यू में।
रेटिंग: 3.0/5
कहानी है सिद्धार्थ ‘सिद्धू’ (नारा रोहित) की, जो एक चालीस साल का कुंवारा है। उम्र बढ़ने के बावजूद, वह शादी करने के लिए संघर्ष कर रहा है क्योंकि उसे अपनी होने वाली पत्नी में कुछ खास गुण (qualities) चाहिए, और वह इस मामले में कोई समझौता करने को तैयार नहीं है। लड़की देखने के दौरान वह किसी न किसी कारण से उन्हें रिजेक्ट कर देता है। ऐसे में, उसकी मुलाकात आयरा (वृति वाघनी) से होती है, और उसे पहली नजर में ही आयरा से प्यार हो जाता है। उसे आयरा में वे सभी गुण मिलते हैं जिनकी वह तलाश कर रहा था, और वह उसके प्यार में पूरी तरह डूब जाता है।
लेकिन कहानी में असली ट्विस्ट तब आता है जब आयरा की मां, वैष्णवी (श्रीदेवी विजय कुमार), उनकी शादी के लिए सबसे बड़ी बाधा बनकर सामने आती हैं। अब, सिद्धार्थ को न केवल आयरा का दिल जीतना है, बल्कि उसकी मां को भी अपनी शादी के लिए मनाना है। सिद्धार्थ अपनी होने वाली पत्नी में कैसे गुण खोज रहा था? वैष्णवी क्यों और कैसे उनकी शादी में समस्या बनी? क्या सिद्धार्थ आयरा से शादी करने के लिए वैष्णवी को मना पाएगा? इन्हीं सवालों का भावनात्मक और मनोरंजक जवाब है फिल्म ‘सुंदरकांड’।
निर्देशन और स्क्रिप्ट: पुरानी कहानियों से प्रेरित, फिर भी नई!
‘सुंदरकांड’ की कहानी में आपको यश चोपड़ा की क्लासिक हिंदी फिल्म ‘लम्हे’ (Lamhe) और तमिल ब्लॉकबस्टर ‘मुथन्ना कत्रिका’ की झलक मिल सकती है। हालांकि, इन फिल्मों से प्रेरणा लेने के बावजूद, निर्देशक वेंकटेश निम्मलपूडी ने कहानी को तेलुगु दर्शकों की संवेदनाओं और नारा रोहित की बॉडी लैंग्वेज के अनुसार ढालने में सफलता हासिल की है।
- पहला भाग: फर्स्ट हाफ में, निर्देशक किरदारों को स्थापित करने और कहानी को विस्तार से बताने में थोड़ा अधिक समय लेते हैं, जिससे फिल्म थोड़ी खिंची हुई लगती है।
- दूसरा भाग: लेकिन कहानी में कॉन्फ्लिक्ट आने के बाद, निर्देशक का स्क्रीनप्ले शानदार है। हर पांच मिनट में एक नया ट्विस्ट और समस्या को सुलझाते हुए कहानी को आगे बढ़ाने का तरीका दिलचस्प है। वैष्णवी और सिद्धार्थ के किरदारों के बीच की समस्या बेहद संवेदनशील है, और इसे बहुत ही परिपक्वता (maturity) के साथ संभाला गया है, जो इस फिल्म की सबसे बड़ी सफलता है।
कैसा है कलाकारों का प्रदर्शन?
- नारा रोहित: कई सालों से एक हिट की तलाश कर रहे नारा रोहित ने इस बार कोई प्रयोग नहीं किया और अपनी बॉडी लैंग्वेज के अनुरूप एक फैमिली ड्रामा चुना है, जो एक अच्छा कदम है। उन्होंने डांस और फाइट्स में भले ही संघर्ष किया हो, लेकिन इमोशनल सीन्स में उन्होंने दिल जीत लिया है। उन्होंने पूरी फिल्म का भार अपने कंधों पर उठाया है।
- श्रीदेवी विजय कुमार: इस फिल्म में वह एक सरप्राइज एलिमेंट हैं। उन्होंने अपने किरदार को बड़ी ही शालीनता और गरिमा के साथ निभाया है।
- वृति वाघनी: नई अभिनेत्री वृति ने न केवल फिल्म को आवश्यक ग्लैमर दिया है, बल्कि प्रदर्शन के मामले में भी प्रभावित किया है।
- कॉमेडी: सत्य, अभिनव गोमटम और वीके नरेश जैसे कॉमेडियन्स ने अपनी परफेक्ट टाइमिंग से फिल्म में हंसी के ठहाके लगवाए हैं।
तकनीकी पहलू
- सिनेमैटोग्राफी: प्रदीप एम वर्मा ने विशाखापत्तनम की खूबसूरती को कैमरे में शानदार ढंग से कैद किया है। हर फ्रेम सुंदर और आंखों को भाने वाला है।
- संगीत: गाने भले ही औसत हों, लेकिन लियोन जेम्स का बैकग्राउंड स्कोर फिल्म की जान है। उन्होंने कई दृश्यों को अपने संगीत से और भी फील-गुड बना दिया है।
- आर्ट वर्क: राजेश पेंटाकोटा का आर्ट वर्क बहुत अच्छा है।
- प्रोडक्शन वैल्यू: संतोष चिन्नापोल्ला, गौतम रेड्डी और राकेश महंकाली के प्रोडक्शन मूल्य अच्छे हैं।
अंतिम फैसला: पैसा वसूल फैमिली ड्रामा
‘सुंदरकांड’ एक जानी-पहचानी, रेगुलर फैमिली ड्रामा है। कॉमेडी और प्यार के तत्वों को मिलाकर, निर्देशक वेंकटेश ने एक ऐसी फिल्म बनाई है जो ढाई घंटे तक दर्शकों का मनोरंजन करती है। यह फन-ओरिएंटेड, मैरिज ड्रामा पसंद करने वालों को बहुत पसंद आएगी। यह एक ‘पैसा वसूल’ फिल्म है, जिसे आप इस वीकेंड अपने पूरे परिवार के साथ एन्जॉय कर सकते हैं।







