“देश के लोगों को अब यह तय करना होगा: क्या किसी मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री का जेल से सरकार चलाना सही है?” यह तीखा और सीधा सवाल केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने बुधवार को संसद में पेश किए गए विवादास्पद संविधान संशोधन विधेयकों का बचाव करते हुए पूछा। शाह ने 2010 के सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले (Sohrabuddin Sheikh fake encounter case) में अपनी खुद की गिरफ्तारी का जिक्र करते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के इस कदम का जोरदार बचाव किया। इन बिलों का उद्देश्य जेल में रहते हुए नेताओं को प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, या केंद्रीय और राज्य मंत्रियों जैसे प्रमुख पदों पर बने रहने से रोकना है।
कांग्रेस पर तीखा हमला, याद दिलाया अपना इस्तीफा
अमित शाह ने कांग्रेस पर उन्हें एक मनगढ़ंत मामले में फंसाने का आरोप लगाते हुए तीखी आलोचना की। उन्होंने कहा कि गिरफ्तारी से पहले उनका इस्तीफा और उसके बाद उनकी बेदाग बरी होना उस नैतिक जवाबदेही को दर्शाता है जिसे ये नए बिल लागू करने का लक्ष्य रखते हैं।
X (पूर्व में ट्विटर) पर एक विस्तृत पोस्ट में, शाह ने इन सुधारों को एक नैतिक सुधार बताया, जिसका उद्देश्य भारतीय राजनीति में नैतिक मानकों में आई गिरावट को पलटना है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संविधान के निर्माताओं ने ऐसी स्थिति की कल्पना भी नहीं की होगी जहां नेता गिरफ्तार होने के बाद भी इस्तीफा देने से इनकार कर देंगे, और हाल ही में जेल में बंद मुख्यमंत्रियों द्वारा सत्ता का प्रयोग जारी रखने की घटनाओं को “चौंकाने वाला और नैतिक रूप से अक्षम्य” बताया।
नए बिलों के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
शाह ने कानून के प्रमुख प्रावधानों को रेखांकित किया:
- गिरफ्तारी के तहत कोई भी व्यक्ति प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, या संघ या राज्य सरकार में मंत्री के रूप में कार्य नहीं कर सकता।
- आरोपी राजनेताओं को गिरफ्तारी के 30 दिनों के भीतर जमानत हासिल करनी होगी, ऐसा न करने पर वे स्वतः ही अपना पद खो देंगे, हालांकि उचित कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से जमानत मिलने पर उन्हें फिर से बहाल किया जा सकता है।
- यह कानून उन अपराधों पर लागू होगा जिनमें पांच साल या उससे अधिक की सजा का प्रावधान है।
“हमने तो अपने प्रधानमंत्री को भी कानून के दायरे में लाया”
गृह मंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसले को जवाबदेही का एक बड़ा कदम बताते हुए कहा कि मोदी सरकार स्वेच्छा से अपने नेताओं को कानून के दायरे में ला रही है। उन्होंने इसकी तुलना कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष से की, जिस पर उन्होंने “सत्ता से चिपके रहने” और भ्रष्टाचार के आरोपी नेताओं की रक्षा के लिए सुधारों का विरोध करने का आरोप लगाया।
शाह ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के तहत पेश किए गए विवादास्पद 39वें संविधान संशोधन का भी जिक्र किया, जिसने पीएम के कार्यालय को न्यायिक जांच से बचा लिया था। उन्होंने कहा, “जहां कांग्रेस की कार्य संस्कृति और नीति प्रधानमंत्री को कानून से ऊपर रखने की रही है, वहीं भाजपा की नीति हमारे अपने प्रधानमंत्री, मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को कानून के दायरे में लाने की है।”
सदन में वेणुगोपाल और शाह के बीच तीखी झड़प
बुधवार को इन बिलों को पेश किए जाने पर सदन में भारी हंगामा हुआ, जिसमें विपक्षी सांसदों ने नारे लगाए और कानून की प्रतियां फाड़ीं। कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल (KC Venugopal) ने सोहराबुद्दीन शेख मामले में अपनी गिरफ्तारी को लेकर शाह का सामना करते हुए कहा, “जब अमित शाह गुजरात के गृह मंत्री थे, तो उन्हें गिरफ्तार किया गया था। क्या उन्होंने तब नैतिकता का पालन किया था?”
शाह ने दृढ़ता से जवाब दिया, यह दोहराते हुए कि उन्होंने अपनी गिरफ्तारी से पहले ही इस्तीफा दे दिया था और पूरी तरह से बरी होने तक कोई भी संवैधानिक पद धारण नहीं किया था।
विपक्ष ने बिल को बताया ‘ड्रैकोनियन’
विपक्ष ने इस कानून की “कठोर” (“draconian”) के रूप में आलोचना की है, यह तर्क देते हुए कि इसका दुरुपयोग गैर-एनडीए दलों द्वारा शासित राज्यों को अस्थिर करने के लिए किया जा सकता है। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने इस कदम की तुलना हिटलर के गेस्टापो से की, जबकि कांग्रेस नेता मनीष तिवारी (Manish Tewari) ने कहा कि ये बिल राजनीतिक दुरुपयोग के लिए दरवाजे खोल सकते हैं और संविधान की मूल संरचना को कमजोर कर सकते हैं।
हालांकि, सरकार ने जोर देकर कहा कि इन बिलों का उद्देश्य गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना करते हुए मंत्रियों को पद से चिपके रहने से रोकना है।







