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Income Tax Bill (2) पास: अब आपका WhatsApp, Email भी सुरक्षित नहीं, अधिकारी तोड़ सकेंगे पासवर्ड

Published On: August 11, 2025
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New Income Tax Bill पास: अब आपका WhatsApp, Email भी सुरक्षित नहीं, अधिकारी तोड़ सकेंगे पासवर्ड
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भारी हंगामे और विपक्ष की नारेबाजी के बीच, विवादास्पद संशोधित आयकर विधेयक 2025 (Revised Income Tax Bill 2025) सोमवार, 11 अगस्त को लोकसभा में बिना किसी बहस के पारित हो गया। विपक्ष बिहार में मतदाता सूची में हेरफेर के आरोपों को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहा था, और इसी हंगामे का फायदा उठाते हुए सरकार ने इस महत्वपूर्ण बिल को पास करा लिया। यह विधेयक मौजूदा आयकर अधिनियम 1961 को सरल बनाने और छोटा करने का प्रयास करता है, लेकिन इसके कुछ प्रावधानों ने देश में निजता के अधिकार (Right to Privacy) को लेकर एक नई और गंभीर बहस छेड़ दी है।

इस नए बिल के सबसे विवादास्पद प्रावधानों में से एक आयकर अधिकारियों की शक्तियों में भारी वृद्धि करना है। अब, तलाशी अभियान (Search and Seizure Operations) के दौरान आयकर अधिकारियों को करदाताओं के व्यक्तिगत ईमेल, सोशल मीडिया अकाउंट्स (जैसे WhatsApp) को जबरन हैक करने और उनका पासवर्ड तोड़ने तक की अनुमति दी गई है।

क्यों है यह बिल इतना महत्वपूर्ण और विवादास्पद?

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) द्वारा पेश किए गए इस बिल का उद्देश्य जटिल आयकर कानून को आसान बनाना है।

  • सरलीकरण: इस बिल ने कानून में शब्दों की संख्या को 1961 के अधिनियम के 5.12 लाख से घटाकर लगभग 2.59 लाख कर दिया है। अध्यायों की संख्या 47 से घटाकर 23 और धाराओं की संख्या 819 से घटाकर 536 कर दी गई है।
  • लेकिन बढ़ीं अधिकारियों की शक्तियां: सरलीकरण के साथ-साथ, इस नए बिल ने तलाशी और जब्ती अभियानों के दौरान आयकर अधिकारियों की शक्तियों को भी काफी हद तक बदल दिया है और उन्हें व्यापक बना दिया है।

क्या कहता है नया कानून? पासवर्ड तोड़ने की मिलेगी शक्ति

नया बिल यह कहता है कि कोई भी व्यक्ति “जिसके कब्जे या नियंत्रण में” इलेक्ट्रॉनिक रूप में कोई भी खाते की किताबें या अन्य दस्तावेज पाए जाते हैं, उसे अधिकृत अधिकारी को इन तक पहुंचने में सहायता प्रदान करनी होगी, “जिसमें किसी भी नाम से पुकारे जाने वाला एक्सेस कोड (access code) भी शामिल है”

और सबसे विवादास्पद प्रावधान यह है कि यदि एक्सेस कोड उपलब्ध नहीं कराया जाता है, तो यह अधिकृत अधिकारी को “किसी भी कंप्यूटर सिस्टम के एक्सेस कोड को ओवरराइड (override) करने” यानी तोड़ने की अनुमति देता है।

सिलेक्ट कमेटी में भी हुआ था विरोध

इस बिल का एक पुराना संस्करण फरवरी में लोकसभा में पेश किया गया था, जिसके बाद इसे समीक्षा के लिए सांसद बैजयंत पांडा (Baijayant Panda) की अध्यक्षता वाली एक प्रवर समिति (Select Committee) के पास भेजा गया था। उस सिलेक्ट कमेटी ने 21 जुलाई को अपनी सिफारिशें सौंपी थीं, जिसके बाद सरकार ने 8 अगस्त को उन सुझावों को शामिल करने के लिए पुराना बिल वापस ले लिया था। सोमवार को जो बिल पास हुआ है, वह वही संशोधित संस्करण है।

  • समिति ने किया बचाव: प्रवर समिति ने अपनी रिपोर्ट में इन प्रावधानों का बचाव करते हुए कहा कि विभिन्न “आपत्तिजनक सबूत और सामग्री व्हाट्सएप संचार, ईमेल, आदि सहित इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड से पाए/जब्त किए जाते हैं” और इनके पासवर्ड अक्सर अधिकारियों के साथ साझा नहीं किए जाते हैं।
  • सदस्यों ने जताई असहमति: हालांकि, समिति के ही कुछ सदस्यों ने इन प्रावधानों में बदलाव की मांग करते हुए अपने असहमति नोट (dissent notes) भी जमा किए थे।

उदाहरण के लिए, सांसद अमर सिंह (Amar Singh) ने तर्क दिया कि संबंधित धारा की शब्दावली “सरकार को करदाताओं को पासवर्ड, चैट, आदि सहित सभी प्रकार के व्यक्तिगत डिजिटल डेटा सौंपने के लिए मजबूर करने की बहुत व्यापक शक्ति देती है,” और इन शक्तियों में कमी करने के लिए कहा था।

सांसद एन.के. प्रेमचंद्रन (N.K. Premachandran) ने अपने असहमति नोट में कहा:

“यह प्रावधान मनमाना है और अधिकारियों को अत्यधिक शक्तियां देता है, और इस प्रावधान के दुरुपयोग की पूरी संभावना है और अंततः यह संविधान में गारंटीकृत और पुट्टस्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोहराए गए किसी व्यक्ति के निजता के अधिकार का उल्लंघन करेगा।”

उन्होंने कहा कि मूल आयकर अधिनियम 1961 के प्रावधान पर्याप्त थे और उन्हें बनाए रखा जाना चाहिए।

निष्कर्ष: इस बिल के पास होने से यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या कर चोरी रोकने के नाम पर किसी नागरिक की निजता का हनन किया जा सकता है। यह मामला आने वाले दिनों में और तूल पकड़ सकता है और इसे सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी जा सकती है।

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