हिंदू धर्म में नाग पंचमी (Nag Panchami) का पर्व बहुत ही श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को पड़ता है। इस दिन नागों की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है। पूजा के लिए घी, दूध, खीर और गुग्गल जैसी सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि नाग पंचमी क्यों मनाई जाती है और इस तिथि का नागों से इतना खास नाता क्यों है? इसके पीछे एक बहुत ही रोचक और महत्वपूर्ण पौराणिक कथा है, जिसका वर्णन अग्नि पुराण में मिलता है। यह कथा महर्षि आस्तीक और राजा जनमेजय से जुड़ी है।
क्या है नाग पंचमी की पौराणिक कथा?
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार देवताओं और राक्षसों ने मिलकर अमरता प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया। उस मंथन से कई बहुमूल्य रत्नों के साथ-साथ एक अत्यंत श्वेत वर्ण का घोड़ा भी निकला, जिसका नाम उच्चैःश्रवा था। उस घोड़े को देखकर नागों की माता कद्रू ने अपनी सौतन विनता (जो गरुड़ की माँ थीं) से कहा, “देखो, यह घोड़ा तो श्वेत वर्ण का है, लेकिन मुझे इसके बाल काले दिखाई दे रहे हैं।”
तब विनता ने कहा, “न तो यह घोड़ा पूरी तरह श्वेत है, न काला है और न ही लाल।” यह सुनकर कद्रू ने विनता से शर्त लगाई। कद्रू ने कहा, “मेरे साथ शर्त लगाओ कि अगर मैं इस घोड़े के बालों को कृष्ण वर्ण (काले रंग) का दिखा दूं, तो तुम मेरी दासी बन जाओगी, और अगर मैं ऐसा नहीं कर सकी तो मैं तुम्हारी दासी बन जाऊंगी।” विनता ने यह शर्त स्वीकार कर ली।
माता कद्रू का अपने पुत्रों को श्राप
शर्त जीतने के लिए, कद्रू ने अपने पुत्र यानी नागों को बुलाया और उन्हें सारी कहानी सुनाई। उन्होंने अपने पुत्रों से कहा, “तुम सब घोड़े के बाल के समान छोटे होकर उच्चैःश्रवा के शरीर से लिपट जाओ, जिससे यह काले रंग का दिखाई देने लगे और मैं अपनी सौत विनता को हराकर उसे अपनी दासी बना लूं।”
माता की यह छल से भरी बात सुनकर नागों ने कहा, “यह छल तो हम नहीं करेंगे, चाहे आपकी जीत हो या हार।” पुत्रों द्वारा अपनी आज्ञा का उल्लंघन करने पर कद्रू क्रोधित हो गईं और उन्होंने नागों को श्राप दे दिया। उन्होंने कहा, “तुम लोगों ने मेरी आज्ञा नहीं मानी, इसलिए मैं तुम्हें श्राप देती हूं कि पांडवों के वंश में उत्पन्न हुआ राजा जनमेजय जब सर्प-यज्ञ करेगा, तब उस यज्ञ में तुम सभी अग्नि में जलकर भस्म हो जाओगे।“
ब्रह्मा जी का वरदान और आस्तीक मुनि द्वारा रक्षा
माता के इस भयंकर श्राप से घबराकर, सभी नाग अपने राजा वासुकि के साथ ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उन्हें अपनी पूरी कहानी सुनाई। इस पर ब्रह्मा जी ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा, “चिंता मत करो। भविष्य में आस्तीक नाम के एक विख्यात ब्राह्मण होंगे, जो राजा जनमेजय के सर्प-यज्ञ को रोकेंगे और तुम सभी की रक्षा करेंगे।“
यही बात भगवान श्रीकृष्ण ने भी युधिष्ठिर से कही थी कि आज से सौ वर्षों के बाद एक महान सर्प-यज्ञ होगा, जिसमें बड़े-बड़े विषधर और दुष्ट नाग नष्ट हो जाएंगे, लेकिन जब करोड़ों नाग अग्नि में दग्ध होने लगेंगे, तब आस्तीक मुनि नामक ब्राह्मण उस सर्प-यज्ञ को रोककर नागों की रक्षा करेंगे।
क्योंकि ब्रह्मा जी ने पंचमी के दिन ही नागों को रक्षा का वरदान दिया था और आस्तीक मुनि ने भी पंचमी तिथि को ही नागों को जलने से बचाया था, इसलिए पंचमी तिथि नागों को बहुत प्रिय है। इसी दिन से नाग पंचमी का पर्व मनाया जाने लगा और नागों की पूजा की परंपरा शुरू हुई, ताकि वे मनुष्यों की रक्षा करें और उन्हें कोई हानि न पहुंचाएं।







