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विधु विनोद चोपड़ा का बड़ा खुलासा, ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ के लिए डिस्ट्रीब्यूटर्स से खटखटाया था दरवाज़ा, और फिर..

Published On: July 26, 2025
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विधु विनोद चोपड़ा का बड़ा खुलासा, 'मुन्ना भाई एमबीबीएस' के लिए डिस्ट्रीब्यूटर्स से खटखटाया था दरवाज़ा, और फिर..
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जाने-माने फिल्म निर्माता (Renowned Filmmaker) और ‘3 इडियट्स’ (3 Idiots), ‘PK’ (2014), और ‘संजू’ (Sanju) जैसी सफल फिल्मों के निर्माता विधु विनोद चोपड़ा (Vidhu Vinod Chopra) ने अपनी एक हालिया बातचीत में ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ (Munna Bhai MBBS) की रिलीज से पहले की शुरुआती संघर्षों (Initial Struggles) को याद किया। उन्होंने बताया कि जब यह फिल्म तैयार हुई, तो साउथ इंडिया (South India) के किसी भी वितरक (Distributor) ने इसका ‘डॉन’ टाइटल (Don Title) स्वीकार नहीं किया था, क्योंकि उनका मानना ​​था कि यह ‘अंडरवियर ब्रांड’ (Underwear Brand) से जुड़ा हुआ है।

‘डॉन’ का टाइटल था मुसीबत: निर्माताओं को नहीं मिला खरीदार

चोपड़ा के अनुसार, जब ‘डॉन’ का नाम तय किया गया और निर्माताओं को प्रस्तुत किया गया, तो किसी भी वितरक की फिल्म को खरीदने की इच्छा नहीं थी। उनका मानना था कि ‘डॉन’ शब्द उस समय केवल एक अंडरवियर ब्रांड से ही जुड़ा हुआ था। उस समय, फिल्म ‘गॉडफादर’ (Godfather) ही कहीं-कहीं अपनी पहचान बना रही थी, और ‘डॉन’ शब्द अपरिचित (Unknown) था। उन्होंने यह भी साझा किया कि एक वितरक ने 11 लाख रुपये में फिल्म खरीदी थी, लेकिन जब उसने फिल्म देखी, तो उसे लगा कि “यह फिल्म एक दिन भी नहीं चलेगी।” उनका मानना ​​था कि ‘मुंबई के बाहर (Outside of Mumbai)’ इसकी ‘बाशिंदे भाषा’ (Bambaiya Language) किसी को समझ नहीं आएगी।

‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’: जेब भरी, पर थिएटर खाली!

चोपड़ा ने कहा, “यह फिल्म वो है जिसने मुझे अमीर बनाया, लेकिन इसका कारण यह था कि मुंबई के बाहर किसी ने भी यह फिल्म नहीं खरीदी।” चेन्नई (Chennai) में, उन्हें फिल्म की एक सुबह के शो (Morning Show) के लिए 5 लाख रुपये का एडवांस (Advance) मिला था। लेकिन, उन्होंने 11 लाख रुपये के सौदे में इस शर्त पर बाकी रकम नहीं ली कि वितरक ‘मेरा अगला फिल्म’ (My Next Film) खरीदने के लिए इसे ‘सुरक्षा’ (Security) के रूप में रख ले।

₹5 लाख की डील से ₹1 करोड़ की कमाई:

आखिरकार, उस एक सेंटर (One Centre) से ₹1 करोड़ से अधिक का व्यापार (₹1 Crore Plus Business) हुआ। चोपड़ा ने बताया, “पहले या दूसरे दिन कोई फिल्म देखने नहीं गया। लेकिन जब आप अच्छा काम करते हैं, तो वह चलता है।”

‘एंटी-मार्केटिंग’ या ‘परवाह नहीं’?

चोपड़ा अपनी ‘एंटी-मार्केटिंग’ (Anti-Marketing) या ‘परवाह न करने’ (Don’t Really Care about Marketing) की रणनीति के बारे में बताते हैं। उनका मानना ​​है कि “लोग अंततः फिल्म खोज ही लेंगे (People will discover)।” उन्होंने ’12वीं फेल’ (12th Fail) का उदाहरण दिया, जिसने ₹10-30 लाख ( ₹10-30 Lakh) से शुरुआत की, लेकिन 7 महीने तक सिनेमाघरों (Cinemas) में चली। उन्होंने यह भी कहा कि फिल्म के रिलीज होने के दो महीने बाद वह OTT प्लेटफॉर्म पर भी उपलब्ध थी, फिर भी लोगों ने सिनेमाघरों में जाकर फिल्म देखी।

यह विचार, हालांकि ‘अपरंपरागत’ (Unconventional) है, ‘कंटेंट किंग’ (Content is King) की धारणा को पुष्ट करता है, जहाँ गुणवत्ता (Quality) और कलात्मकता (Artistry) अंततः मार्केटिंग के शोर (Marketing Noise) पर हावी हो जाती है।

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