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Hari Hara Veera Mallu का भव्य आगाज़, Bobby Deol के साथ जानिए कैसा होगा ये एक्शन-ड्रामा

Published On: July 24, 2025
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Hari Hara Veera Mallu का भव्य आगाज़,Bobby Deol के साथ जानिए कैसा होगा ये एक्शन-ड्रामा
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पवन कल्याण (Pawan Kalyan) स्टारर, बहुप्रतीक्षित पीरियड एपिक (Period Epic) फिल्म ‘हरिहर वीरा मल्लू: पार्ट 1 – स्वॉर्ड वर्सेस स्पिरिट’ (Hari Hara Veera Mallu: Part 1 – Sword vs Spirit) आखिरकार सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी है। यह फिल्म, जिसे कभी ‘शेल्फ्ड प्रोजेक्ट’ (Shelved Project) माना जा रहा था, अब इस साल की सबसे चर्चित सिनेमाई घटनाओं (Most Talked-about Cinematic Events) में से एक बनकर उभरी है। फिल्म का शुरुआती ‘बज़’ (Buzz) धीमा था, लेकिन पवन कल्याण के जोशीले प्री-रिलीज भाषण (Fiery Pre-release Speech) और प्रेस इंटरैक्शन (Press Interactions) के बाद, उम्मीदें आसमान छूने लगी हैं। फिल्म अब दुनिया भर के सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो रही है, जो एक भव्य ऐतिहासिक तमाशे (Grand Historical Spectacle) के लिए मंच तैयार कर रही है।

फिल्म की कहानी: 1650 के दशक की पृष्ठभूमि में एक साहसिक यात्रा

1650 के दशक (1650s) की पृष्ठभूमि पर आधारित, ‘हरिहर वीरा मल्लू’ वीरा मल्लू (Pawan Kalyan) की कहानी कहती है, जो ‘रॉबिन हुड’ (Robin Hood) जैसी शख्सियत हैं और कोल्लूर के राजा (King of Kollur) का ध्यान आकर्षित करते हैं। एक शाही मिशन (Royal Mission) का काम मिलने पर, वीरा मल्लू राजा को चतुराई से मात देकर पंचमी (Nidhhi Agerwal) के साथ भाग जाता है। बाद में, कुतुब शाह (Qutub Shah) (दलीप ताहिल – Dalip Tahil) उसकी चालाकी को पहचानता है और उसे एक अधिक महत्वपूर्ण कार्य सौंपता है: पौराणिक कोह-ए-नूर हीरे (Legendary Koh-i-Noor Diamond) को वापस लाना, जो दिल्ली (Delhi) में औरंगजेब (Aurangzeb) के पास है। वीरा यह स्वीकार करता है और हीरे की तलाश में निकल पड़ता है, लेकिन इस मिशन के पीछे एक गहरा मकसद (Deeper Motive) छिपा है। वीरा का असली मकसद क्या है? पंचमी कौन है, और कुतुब शाह उस पर क्यों भरोसा करता है? क्या वीरा और औरंगजेब के बीच कोई छिपा हुआ अतीत (Buried Past) है? इन सभी सवालों के जवाब धीरे-धीरे खुलेंगे, और वीरा के रहस्यमय अतीत (Mysterious Past) की परतों को उजागर करेंगे।

सकारात्मक पहलू (Plus Points):

  • प्रेजेंटर की निष्ठा (Conviction of the Presenter): फिल्म का सबसे प्रशंसनीय पहलू ए. एम. रत्नम (A. M. Rathnam) का अटूट विश्वास है, जो फिल्म के प्रेजेंटर हैं। कहानी में उनका विश्वास और समर्पण साफ झलकता है और सराहनीय (Heartfelt Appreciation) है।
  • पवन कल्याण का अभिनय: पवन कल्याण ने ‘वीर मल्लू’ के किरदार में गुरुत्वाकर्षण (Gravitas) लाया है। उनका अभिनय शांत और प्रभावशाली (Composed and Impactful) है, और एक्शन दृश्यों में उनकी उपस्थिति बिजली की तरह⚡️ है। धर्म (Dharma) पर आधारित भावनात्मक दृश्यों में उनके संवाद अदायगी में ईमानदारी और ताकत महसूस होती है।
  • एक्शन कोरियोग्राफी (Action Choreography): एक्शन सीक्वेंस फिल्म की सबसे बड़ी संपत्तियों (Biggest Assets) में से हैं। पहले हाफ में मछलीपट्टनम पोर्ट फाइट (Machilipatnam Port Fight)चारमीनार की लड़ाई (Charminar Battle), और कोल्लूर कुश्ती फाइट (Kushti Fight in Kollur) जैसे तीन उत्कृष्ट सीक्वेंस (Three Standout Sequences) हैं, जिन्हें बड़े पैमाने और शानदार तरीके (Scale and Flair) से फिल्माया गया है। दूसरे हाफ में मुगल-शासित गांव (Mughal-ruled Village) में एक आकर्षक एक्शन ब्लॉक (Compelling Action Block) है, जो अपनी रॉ इंटेंसिटी (Raw Intensity) के लिए खड़ा है। ये सीक्वेंस ऊर्जा (Energy) और सिनेमैटिक एड्रेनालाईन (Cinematic Adrenaline) से भरपूर हैं।
  • सहायक कलाकारों का प्रदर्शन: निधि अग्रवाल (Nidhhi Agerwal), हालांकि उन्हें सीमित स्क्रीन टाइम (Limited Screen Time) मिला है, उन्होंने अपने हिस्से का काम शालीनता (Grace) से किया है। बॉबी देओल (Bobby Deol) खतरनाक और इंटेंस (Menacing and Intense) हैं, हालांकि पवन के साथ उनकी बातचीत संक्षिप्त है। उनका फाइनल टकराव (Eventual Clash) निश्चित रूप से सीक्वल के लिए बचाया जा रहा है। सत्याराज (Sathyaraj), रघु बाबू (Raghu Babu), सुनील (Sunil), कबीर दुहान सिंह (Kabir Duhan Singh) जैसे सहायक अभिनेताओं ने भी अपनी भूमिकाओं को प्रभावी ढंग से (Effectively) निभाया है।

नकारात्मक पहलू (Minus Points):

  • कहानी में कसाव की कमी: हालाँकि पहला हाफ काफी हद तक आकर्षक (Largely Gripping) है, कहानी दूसरे हाफ में अपनी लय खो देती है (Loses Steam in the Second Half)। कहानी के बड़े हिस्से को सीक्वल के लिए होल्ड (Held Back for the Sequel) करने की वजह से, मेकर्स ने फिलर दृश्यों (Filler Scenes) का सहारा लिया है जो दर्शकों के धैर्य की परीक्षा लेते हैं। ये खंड, अकेले में गुजरने योग्य होते हुए भी, कहानी के वजन को धारण करने में विफल रहते हैं जब एक ‘भव्य मुकाबले’ (Monumental Face-off) की प्रत्याशा बढ़ रही होती है।
  • शिथिल गति और फोकस का अभाव: दूसरे हाफ में कई दृश्य खींचे हुए (Stretched) लगते हैं, जिनमें आवश्यकता और कथात्मक फोकस (Urgency and Narrative Focus) की कमी है। गति स्पष्ट रूप से गिरती है, हालाँकि भावनात्मक एक्शन हिस्से (Emotional Action Portions) कुछ आवश्यक ऊंचाई (Elevation) लाते हैं।
  • अल्पविकसित पात्र (Underwritten Characters): सत्याराज और निधि अग्रवाल जैसे पात्रों को कम विकसित (Underdeveloped) किया गया है। निधि ने पहले हाफ में एक अच्छा प्रभाव छोड़ा था, लेकिन कहानी बढ़ने के साथ वे पृष्ठभूमि में फीकी पड़ गईं।
  • विजुअल इफेक्ट्स (Visual Effects – VFX) की खामियां: कहानी का सबसे बड़ा दोष (Biggest Drawback) इसका विजुअल इफेक्ट्स है। पहाड़ी टकराव (Hill Confrontation) सहित प्रमुख दृश्यों में सब-पार सीजीआई (Subpar CGI) से इमर्शन टूट जाता है। इतने बड़े पैमाने की फिल्म के लिए, VFX का काम अप्रत्याशित रूप से कमजोर (Unexpectedly Weak) है और कई शक्तिशाली क्षणों (Powerful Moments) को कम कर देता है।
  • SSB प्रशिक्षण का अवास्तविक चित्रण: SSB प्रशिक्षण को ‘मिनिमल ट्रेनिंग, करेज, विल-पावर और एंड्योरेंस’ (Minimal Training, Courage, Will-power, and Endurance) से क्लीयर करने की संभावना के बजाय, फिल्म इसे ड्रिल और एड्रेनालाईन-ईंधन वाले वीर कृत्य तक सीमित कर देती है। यह वास्तविकता (Reality) को दरकिनार करते हुए शॉर्टकट लेता है, जिससे तन्वी के संघर्ष की प्रामाणिकता कम हो जाती है।
  • सेना प्रोटोकॉल का उल्लंघन: सबसे बड़ी खामी भारतीय सेना के सैन्य और राष्ट्रीय सुरक्षा प्रोटोकॉल को धता बताने का चित्रण है। “हर किसी को सपना देखने का अधिकार है” जैसी सरल धारणा के नाम पर इस काल्पनिक कहानी (Fantastical Plot Points) को सही ठहराना, टोनल बेमेलता (Tonal Clumsiness) का प्रमाण है। यह रचनात्मक स्वतंत्रता (Creative Liberty) फिल्म के भावनात्मक चाप और मानवीय संवेदनशीलता (Human Sensitivities) को कमतर आंकती है।

तकनीकी पहलू:

  • निर्देशन: निर्देशक कृष्ण जगर्लामुडी (Krish Jagarlamudi) की दृष्टि (Vision) फिल्म के कुछ हिस्सों में स्पष्ट है। उनका ऐतिहासिक विवरण (Historical Detailing) और नैरेटिव शैली (Narrative Style) गहराई प्रदान करती है। निर्देशक ज्योति कृष्णा, जिन्होंने शेष भागों को पूरा किया, ने इसे ठीक-ठाक संभाला (Handled Them Decently) है, और यह देखना दिलचस्प होगा कि वे अगले अध्याय को कैसे आकार देते हैं।
  • सिनेमैटोग्राफी: ज्ञाना शेखर वी.एस. (Gnana Sekhar V.S.) और मनोज परमहंस (Manoj Paramahamsa) का सिनेमैटोग्राफी (Cinematography) फिल्म के पीरियड सेटिंग (Period Setting) में समृद्धि जोड़ता है।
  • संगीत: एम. एम. कीरवानी (M. M. Keeravani) का संगीत (Music) फिल्म की रीढ़ (Backbone) है। उनकी रचनाएँ (Compositions) महत्वपूर्ण क्षणों में फिल्म को ऊपर उठाती हैं और उसके भावनात्मक वजन (Emotional Weight) को बढ़ाती हैं, खासकर एक्शन दृश्यों के दौरान।
  • संपादन (Editing): प्रवीण के. एल. (Praveen K. L.) का संपादन पहले हाफ में क्रंची (Crisp) है, लेकिन दूसरे हाफ में इसे और बेहतर बनाया जा सकता था।
  • प्रोडक्शन वैल्यू: समग्र रूप से प्रोडक्शन वैल्यू (Production Values) सराहनीय हैं, लेकिन खराब विजुअल इफेक्ट्स (Poor Visual Effects – VFX) फिल्म के अन्यथा महत्वाकांक्षी पैमाने को कम कर देते हैं।

कुल मिलाकर, ‘हरिहर वीरा मल्लू’ एक सभ्य सिनेमाई अनुभव (Decent Cinematic Experience) है। पवन कल्याण इस पीरियड फिल्म (Period Film) को ताकत और संयम (Strength and Restraint) को संतुलित करने वाले प्रदर्शन के साथ एंकर करते हैं, जबकि कीरवानी का संगीत (Keeravani’s Music) इसके भावनात्मक और नाटकीय highs को बढ़ाता है। एक्शन सीक्वेंस (Action Sequences) एक प्रमुख आकर्षण हैं और कहानी में ऊर्जा भरते हैं। नकारात्मक पक्ष पर, कम विकसित पात्र, बॉबी देओल का कम उपयोग, नायक-खलनायक टकराव की अनुपस्थिति, खराब सीजी (Poor CG) कार्य, और धीमी गति का दूसरा हाफ (Sluggish Second Half) इसे कुछ हद तक पीछे खींचते हैं। फिर भी, फिल्म में दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए पर्याप्त शक्ति है। यह एक बड़ी सीक्वल (Bigger Sequel) के लिए जमीन तैयार करती है। इसे इस सप्ताहांत बड़े पर्दे पर जरूर देखें।

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