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Dixon Technologies का बड़ा क़दम: चीनी कंपनियों संग 5 ज्वाइंट वेंचर और अधिग्रहण

Published On: July 16, 2025
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Dixon Technologies का बड़ा क़दम: चीनी कंपनियों संग 5 ज्वाइंट वेंचर और अधिग्रहण
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Dixon Technologies: भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग (Electronics Manufacturing) क्षेत्र की जानी-मानी कंपनी डिक्सन टेक्नोलॉजीज (Dixon Technologies) ने हाल ही में दो महत्वपूर्ण समझौते किए हैं, जो देश के विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) नियमों, विशेष रूप से चीन (China) की कंपनियों से संबंधित प्रेस नोट 5 (Press Note 5) के कार्यान्वयन के बाद सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षण मामला साबित हो सकते हैं। कंपनी ने दो चीनी फर्मों – Qtech और Chongqing Yuhai के साथ एक संयुक्त उद्यम (Joint Venture – JV) और एक अधिग्रहण (Acquisition) समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।

चीन के साथ साझेदारी पर सरकार की कड़ी नज़र:

ये नए सौदे डिक्सन टेक्नोलॉजीज को चीनी कंपनियों के साथ पाँच ऐसे प्रमुख सहयोग (Five Similar Tie-ups) के करीब लाते हैं, जिनमें से प्रत्येक में कंपनी की 51% या उससे अधिक हिस्सेदारी है। इन सौदों पर आगे बढ़ने के लिए सरकार से FDI अनुमोदन (FDI Approval) प्राप्त करना आवश्यक होगा। ऐसे में, सरकार यह तय करेगी कि प्रेस नोट 5 के लागू होने के बाद चीनी फर्मों के साथ प्रस्तावों को कैसे संभाला जाए, जो भारत के सामरिक क्षेत्रों में चीनी निवेश पर अधिक कड़ी नज़र रखता है।

यह कदम “चीन प्लेबुक” (China Playbook) को भारतीय संदर्भ में परीक्षण के अधीन लाता है, जहाँ भू-राजनीतिक तनावों के बीच चीनी कंपनियों के साथ साझेदारी पर सावधानी बरती जा रही है। इन डीलों का भाग्य, भारत की FDI नीति के लचीलेपन और राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं के बीच संतुलन बनाने की क्षमता का पैमाना होगा।

विप्रो इंडिया के साथ पिछला सहयोग एक मिसाल:

इस पृष्ठभूमि में, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि डिक्सन टेक्नोलॉजीज ने जनवरी 2025 में वीवो इंडिया (Vivo India) के साथ एक संयुक्त उद्यम (JV) की घोषणा की थी, जिसमें मोबाइल फोन के निर्माण के लिए उसकी 51% हिस्सेदारी थी। यह दर्शाता है कि डिक्सन टेक्नोलॉजीज पहले भी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के साथ सफल साझेदारी स्थापित कर चुकी है, जो भविष्य में चीनी कंपनियों के साथ प्रस्तावित सौदों के लिए भी एक सकारात्मक संकेत हो सकता है।

विनिर्माण हब बनने की राह में अहम मोड़:

भारत सरकार का लक्ष्य देश को इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग का वैश्विक हब बनाना है। इस दिशा में, ‘मेक इन इंडिया’ (Make in India) और प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम (Production-Linked Incentive Scheme) जैसी पहलों ने ** FDI** को आकर्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि, चीनी निवेश पर कड़े नियम भी लागू किए गए हैं, जिससे इन नए सौदों का भविष्य और अधिक चर्चा का विषय बन गया है।

डिक्सन टेक्नोलॉजीज जैसी भारतीय कंपनियां जो चीन की मजबूत विनिर्माण और तकनीकी क्षमताओं का लाभ उठाना चाहती हैं, उन्हें अब सरकारी मंज़ूरी के लिए कठोर जांच का सामना करना पड़ सकता है। इन नए समझौतों के नतीजे यह भी तय करेंगे कि भविष्य में भारत में चीनी कंपनियों के साथ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और संयुक्त उद्यमों (Technology Transfer and Joint Ventures) को कैसे बढ़ावा दिया जाएगा।

यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस मामले पर क्या रुख अपनाती है और ये सौदे भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था (Digital Economy) और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण (Electronics Manufacturing) के भविष्य को कैसे आकार देते हैं।


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