यमन में मृत्युदंड की सजा का सामना कर रही केरल की नर्स निमिषा प्रिया (Nimisha Priya) के लिए समय तेजी से भाग रहा है और उसकी जान बचाने के सभी प्रयास अब तक नाकाम साबित हो रहे हैं। 16 जुलाई को उसे फांसी की सजा दी जानी है, और इस घटना ने पूरे भारत में चिंता और हताशा का माहौल पैदा कर दिया है। भारत सरकार ने सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) को सूचित किया है कि उन्होंने निमिषा को बचाने के लिए अपनी “सभी संभव कोशिशें” की हैं, लेकिन यमनी कानून और वहां की अदालतों के फैसलों के कारण सफलता मिलना अत्यंत कठिन प्रतीत हो रहा है।
क्यों सुनाई गई फांसी की सज़ा? यमनी कोर्ट के अनुसार चौंकाने वाले खुलासे
समाचार एजेंसी पीटीआई (PTI) से मिली जानकारी के अनुसार, यमनी अदालतों के दस्तावेजों (Yemeni Court Documents) से निमिषा प्रिया पर लगे आरोप की गंभीरता का पता चलता है। दस्तावेज़ों के अनुसार, जुलाई 2017 में, निमिषा प्रिया पर अपने स्थानीय व्यापारिक साझेदार, तलाल अब्दो महदी (Talal Abdo Mahdi) को कथित तौर पर नशीला पदार्थ खिलाकर उसकी हत्या करने का आरोप है। अदालत का यह भी कहना है कि महदी की हत्या के बाद, निमिषा प्रिया ने एक अन्य नर्स की मदद से उसके शरीर को टुकड़ों में काटा और फिर उन टुकड़ों को एक अंडरग्राउंड टैंक में फेंक दिया। यह बेहद खौफनाक आरोप है जो किसी भी न्याय प्रणाली में गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है।
सूत्रों के अनुसार, महदी की हत्या का पता चलने के बाद निमिषा को गिरफ्तार किया गया था, और उन्होंने अपनी पूछताछ के दौरान हत्या की बात कबूल भी कर ली थी। इसके बाद, यमन की राजधानी सना (Sana’a) की एक निचली अदालत ने उन्हें मौत की सजा (Death Penalty) सुनाई थी। निमिषा के परिवार ने इस फैसले के खिलाफ यमन की सुप्रीम कोर्ट में अपील (Appeal) दायर की, लेकिन उनकी अपील खारिज कर दी गई और मौत की सजा बरकरार रखी गई। बाद में, निमिषा ने यमन के राष्ट्रपति से दया की गुहार (Mercy Petition) भी लगाई, लेकिन उन्हें क्षमादान देने से इनकार कर दिया गया।
भारत सरकार की असमर्थता और सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
सूत्रों ने यह भी बताया कि मृतक तलाल अब्दो महदी का परिवार ब्लड मनी (Blood Money), यानी मौत के बदले मुआवजा स्वीकार करने को भी तैयार नहीं है। इसके कारण निमिषा प्रिया को फांसी की सजा से बचाने के लिए सभी कानूनी और कूटनीतिक रास्ते अवरुद्ध हो गए हैं। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय (Ministry of External Affairs) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि यमन के साथ बात करने की एक तय सीमा होती है और उस सीमा से आगे जाकर अतिरिक्त प्रयास संभव नहीं हैं।
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान, वकील सुभाष चंद्रन के.आर. (Subhash Chandran K.R.) ने केंद्र सरकार को भारतीय नर्स को बचाने के लिए राजनयिक चैनलों (Diplomatic Channels) के माध्यम से और प्रयास करने का निर्देश देने की मांग की थी। हालांकि, केंद्र सरकार ने अदालत को सूचित किया कि सभी संभावित कदम उठाए जा चुके हैं, और यमन फांसी की सजा टालने को लेकर सहमत नहीं हो रहा है। सरकार ने यह भी बताया कि फांसी टालने को लेकर आज सुबह 10:30 बजे भी एक वार्ता हुई थी, लेकिन उसका भी कोई नतीजा नहीं निकला।
निमिषा प्रिया का यमन तक का सफर और परिस्थितियों का खेल
निमिषा प्रिया मूल रूप से केरल के पलक्कड़ जिले के कोल्लेंगोडे (Kollengode) की रहने वाली हैं। वह 2008 में अपने दिहाड़ी मजदूर माता-पिता की आर्थिक मदद के लिए यमन चली गईं थीं। यमन में उन्होंने एक अस्पताल में काम करना शुरू किया और इसी बीच 2011 में भारत आकर टॉमी थॉमस (Tommy Thomas) नामक एक ऑटो-रिक्शा ड्राइवर से शादी की। शादी के बाद वह अपने पति के साथ यमन लौट गईं, जहाँ थॉमस ने भी अपना छोटा-मोटा व्यवसाय शुरू किया।
2012 में, निमिषा और थॉमस की एक बेटी हुई। काम के साथ-साथ बच्ची की परवरिश उनके लिए मुश्किल हो रहा था, और उनकी कमाई भी इतनी नहीं थी कि वे यमन में रहकर सुरक्षित जीवन यापन कर सकें। इसी दौरान, 2014 में यमन में गृहयुद्ध (Civil War in Yemen) शुरू हो गया। आर्थिक तंगी और अनिश्चितता के माहौल में, थॉमस अपनी बेटी को लेकर भारत लौट आए। लेकिन निमिषा ने परिवार के भरण-पोषण के लिए यमन में रहकर काम करने का फैसला किया।
अधिक पैसा कमाने के लिए निमिषा ने यमन में अपना खुद का क्लिनिक (Own Clinic) खोलने का सोचा। यमन के कानूनों के अनुसार, इसके लिए एक स्थानीय व्यक्ति के साथ साझेदारी करना अनिवार्य था। इस तरह, निमिषा ने महदी को अपना बिजनेस पार्टनर बनाया और अपना क्लिनिक खोला। उनका क्लिनिक अच्छा चलने लगा, लेकिन तभी महदी का रवैया बदलने लगा। उसने निमिषा के पैसों पर नजर गड़ा दी, क्लिनिक के दस्तावेजों में हेरफेर करके उसे अपने नाम कर लिया, और निमिषा को अपनी पत्नी बताकर सारा पैसा हड़पना शुरू कर दिया। उसने निमिषा का पासपोर्ट भी जब्त कर लिया, जिससे उसके लिए यमन छोड़ना असंभव हो गया।
निमिषा ने इस समस्या के समाधान के लिए सना पुलिस से महदी के खिलाफ शिकायत की, लेकिन उल्टा उन्हें ही छह दिन के लिए जेल में डाल दिया गया। जेल से रिहा होने के बाद महदी का अत्याचार और भी बढ़ गया। वह नशीली दवाओं के सेवन का आदी हो गया था और निमिषा का शारीरिक व मानसिक शोषण कर रहा था।
साजिश या मजबूरी: कैसे हुई हत्या?
जुलाई 2017 में, निमिषा ने महदी को बेहोश कर अपना पासपोर्ट वापस पाने की एक योजना बनाई। उसने महदी को बेहोशी की दवा दी, लेकिन अफसोस कि दवा की खुराक गलती से बहुत ज्यादा हो गई और महदी की मौत हो गई। महदी की मौत के एक महीने बाद, जब निमिषा सऊदी-यमन सीमा के पास देश से भागने की कोशिश कर रही थी, तब उसे गिरफ्तार कर लिया गया। यह गिरफ्तारी ही उसके पूरे मामले की शुरुआत बनी और अंततः मौत की सजा का कारण बनी।
निमिषा के परिवार की उम्मीदें अब सिर्फ अंतरराष्ट्रीय दबाव और कूटनीतिक प्रयासों पर टिकी हैं, लेकिन यमन के सख्त कानूनों और परिवार द्वारा ब्लड मनी स्वीकार न करने के फैसले के कारण यह रास्ता बेहद कठिन नजर आ रहा है।