Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को चुनाव आयोग (Election Commission – EC) से सवाल किया कि बिहार (Bihar) में मतदाता सूचियों (Voter Lists) के विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision – SIR) में आधार कार्ड (Aadhaar Card) को नागरिकता (Citizenship) के प्रमाण के रूप में क्यों स्वीकार नहीं किया जा रहा है, जो अक्टूबर-नवंबर में होने वाले चुनावों के मद्देनज़र महत्त्वपूर्ण है। बेंच (Bench) पर एक न्यायाधीश (Judge) ने यह भी टिप्पणी की कि वह स्वयं भी, विशेष रूप से निर्धारित छोटी समय-सीमा (Short Timeline) को देखते हुए, सभी आवश्यक दस्तावेज (Mandatory Documents) प्रस्तुत करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां (Supreme Court Remarks) चुनावी प्रक्रिया में नागरिकता और पहचान प्रमाण के महत्व पर प्रकाश डालती हैं।
चुनाव अधिकारियों द्वारा बिहार विधानसभा चुनावों 2025 की पूर्व संध्या पर मतदाताओं को गणना प्रपत्र (Enumeration Forms) सौंपे जा रहे हैं, जिनका कार्यक्रम अक्टूबर-नवंबर में है। (स्रोत: X/@CEOBihar)
यह स्थिति नागरिक पंजीकरण (Citizen Registration) और मतदान के अधिकार (Voting Rights) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उठाती है, खासकर तब जब आधार जैसी सुस्थापित पहचान प्रणाली को दरकिनार किया जा रहा हो।
गोपाल शंकरनारायणन (Gopal Sankaranarayanan) ने बताया कि आधार लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of Peoples Act) के अनुसार एक स्वीकार्य दस्तावेज है, लेकिन चुनाव आयोग (EC) इसे बिहार SIR के लिए नागरिकता का मान्य प्रमाण नहीं मान रहा है। इस पर, एससी बेंच (SC Bench) ने ईसी (EC) से कारण पूछा।
राकेश द्विवेदी (Rakesh Dwivedi), जो ईसी के वकील (EC’s Lawyer) हैं, ने अदालत (Court) को बताया: “आधार कार्ड का उपयोग नागरिकता के प्रमाण के रूप में नहीं किया जा सकता है।” न्यायमूर्ति सुQuesto!
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को चुनाव आयोग (Election Commission – EC) से सवाल किया कि बिहार (Bihar) में मतदाता सूचियों (Voter Lists) के विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision – SIR) में आधार कार्ड (Aadhaar Card) को नागरिकता (Citizenship) के प्रमाण के रूप में क्यों स्वीकार नहीं किया जा रहा है, जो अक्टूबर-नवंबर में होने वाले चुनावों को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण है। बेंच (Bench) पर एक न्यायाधीश (Judge) ने एक बिंदु पर टिप्पणी की कि वह स्वयं भी, विशेष रूप से निर्धारित छोटी समय-सीमा (Short Timeline) को देखते हुए, सभी आवश्यक दस्तावेज (Mandatory Documents) प्रस्तुत नहीं कर सकते थे। यह टिप्पणी आधार कार्ड को नागरिकता प्रमाण के रूप में स्वीकार न करने की प्रक्रिया पर संदेह पैदा करती है।
चुनाव अधिकारियों द्वारा बिहार विधानसभा चुनावों 2025 के लिए, जो अक्टूबर-नवंबर में होने वाले हैं, से ठीक पहले मतदाताओं को गणना प्रपत्र (Enumeration Forms) सौंपे जा रहे हैं। (स्रोत: X/@CEOBihar)
न्यायमूर्ति सुQuesto! (Justice Sudhanshu Dhulia) ने टिप्पणी की: “…नागरिकता एक ऐसा मुद्दा है जिसे चुनाव आयोग द्वारा नहीं, बल्कि गृह मंत्रालय (MHA – Ministry of Home Affairs) द्वारा निर्धारित किया जाना है।“
यह न्यायिक हस्तक्षेप (Judicial Intervention) मामले की संवेदनशीलता (Sensitivity) को उजागर करता है, खासकर जब नागरिकता जैसे बुनियादी अधिकार (Fundamental Rights) की बात आती है।
यह मामला न्यायमूर्ति धूलिया (Justice Dhulia) और न्यायमूर्ति जॉयमाला बागची (Justice Joymala Bagchi) की बेंच (Bench) द्वारा सुना जा रहा है। ईसी वकील (EC Lawyer) ने मतदान के अधिकारों के लिए नागरिकता की जाँच करने की शक्ति के लिए संविधान के अनुच्छेद 326 (Article 326 of the Constitution) का हवाला दिया।
एससी बेंच (SC Bench) ने फिर उस कवायद की समय-सारणी (Timing of the Exercise) पर सवाल उठाया, जो जून के अंत (Late June) में शुरू हुई थी। बेंच (Bench) ने कहा कि यदि ईसी (EC) मतदान के अधिकार को छीनने का निर्णय लेता है, तो उस व्यक्ति को निर्णय के खिलाफ अपील करनी होगी और “इस पूरी कवायद से गुजरना होगा और इस प्रकार आगामी चुनाव (Ensuing Election) में अपने मतदान के अधिकार से वंचित किया जाएगा।” “आप मुझसे इन दस्तावेजों के लिए पूछते हैं…” बेंच (Bench) ने बार एंड बेंच (Bar and Bench) के अनुसार टिप्पणी की, “मान लीजिए कि मुझे जाति प्रमाण पत्र (Caste Certificate) चाहिए… मैं अपना आधार कार्ड दिखाता हूं [और] मुझे उसके आधार पर जाति प्रमाण पत्र मिलता है। इसलिए वह एक स्वीकार्य दस्तावेज (Acceptable Document) है (SIR के लिए) लेकिन आधार कार्ड नहीं।” जब ईसी के वकील ने प्रासंगिक अधिनियम (Relevant Act) का हवाला दिया कि आधार नागरिकता (Citizenship) या अधिवास (Domicile) के प्रमाण के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है, तो अदालत ने कहा कि पूरी समझ के लिए कई कानूनों (Multiple Laws) को एक साथ पढ़ने की आवश्यकता है।
जब 11 दस्तावेजों के बारे में पूछा गया, तो ईसी ने कहा कि आधार पहचान का प्रमाण (Proof of Identity) है, जबकि नागरिकता को दस्तावेजों के एक सेट (Set of Documents) से साबित करने की आवश्यकता है। इस तर्क के बीच, न्यायमूर्ति धूलिया (Justice Dhulia) ने कथित तौर पर टिप्पणी की: “अगर आप मुझसे इन दस्तावेजों के लिए पूछते हैं, तो मैं खुद आपको ये सब नहीं दिखा सकता। तो आपकी सभी समय-सीमाओं के साथ… मैं आपको जमीनी स्तर की समस्याएं बता रहा हूं।” यह प्रश्न अभ्यास की त्वरित गति (Quick Pace of the Exercise) पर वापस आ गया।
यह अवलोकन चुनावी प्रक्रिया की व्यावहारिकता (Practicality) पर सवाल उठाता है, खासकर बिहार जैसे राज्य में जहां कागजी कार्रवाई (Paperwork) की प्रक्रिया अक्सर जटिल (Complex) हो सकती है।
चुनाव से ठीक पहले: क्या राजनीतिक है यह कवायद?
यह कवायद 2025 के बिहार चुनावों (2025 Bihar Polls) से ठीक पहले हुई है। जबकि अदालत ने देखा कि “गैर-नागरिकों (Non-citizens) को भूमिका में न रखने के लिए एक गहन अभ्यास के माध्यम से चुनावी रोल को साफ करने में कुछ भी गलत नहीं है,” उसने एक rhetorical remark (rhetorical टिप्पणी) भी की, “लेकिन अगर आप प्रस्तावित चुनाव से कुछ महीने पहले ही निर्णय लेते हैं…“
न्यायमूर्ति बागची (Justice Bagchi) ने यह भी कहा, “मेरा सवाल यह है कि इस प्रक्रिया को आने वाले चुनाव से क्यों जोड़ा जाए?” इस पर ईसी वकील (EC Lawyer) ने जोर देकर कहा कि किसी को भी “बिना नोटिस या सुने डिलीट नहीं किया जाएगा,” जैसा कि लाइव लॉ (Live Law) ने रिपोर्ट किया है। इस पर विराम (Break) लेने के बाद, अदालत ने ईसी के लिए तीन प्रश्नों को सारांशित किया: पहला, “विशेष गहन संशोधन” (Special Intensive Revision) आयोजित करने के लिए ईसी के बहुत अधिकार (Authority) के बारे में; दूसरा, वैध प्रक्रिया (Valid Procedure) के बारे में, जिसमें वह क्या मांग सकता है; और फिर अभ्यास का समय (Timing of the Exercise), विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले।
सुनवाई में अन्य प्रमुख प्रश्न भी उठाए गए, जैसे कि जब पिछली बार ভোটার संशोधन (Voter Revision) 2003 में किया गया था तब से इसका महत्व क्या है।
पहले, “गहन” अभ्यास के विरोधियों (Opponents) ने तर्क दिया कि यह पूरी तरह से “मनमाना” (Arbitrary) और “भेदभावपूर्ण” (Discriminatory) है। उन्होंने अपनी याचिकाओं (Pleas) में भी बताया कि SIR वर्षों से सूची में रहे मतदाताओं को फिर से खुद को सत्यापित (Re-verify Themselves) करने के लिए मजबूर करता है, और कुछ मामलों में उनके माता-पिता को भी। चुनाव आयोग की प्रक्रिया (EC’s Process) की आलोचना की जा रही है।
विपक्षी राजनेताओं (Opposition Politicians), जिनमें से कुछ याचिकाकर्ताओं में शामिल हैं, ने विशेष रूप से समय की आलोचना की है। यह विरोध राजनीतिक दलों (Political Parties) द्वारा चुनाव आयोग के फैसलों पर अक्सर उठने वाले सवालों को उजागर करता है।
सुनवाई SIR पर तत्काल रोक (Immediate Stay) लगाने के SC के इनकार (Refusal) के बाद आती है।
बिहार SIR को मुख्य चुनौती क्या है?
पारदर्शिता समूह एडीआर (ADR) और स्वराज पार्टी (Swaraj Party) के योगेंद्र यादव (Yogendra Yadav) ने ईसी की अधिसूचना (EC’s Notification) को चुनौती देते हुए संविधान के अनुच्छेद 32 (Article 32 of the Constitution) का हवाला दिया है। टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा (TMC MP Mahua Moitra) भी याचिकाकर्ताओं (Petitioners) में शामिल हैं। कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) और अभिषेक मनु सिंघवी (Abhishek Manu Singhvi) जैसी शीर्ष वकील (Top Lawyers) इस चुनौती का नेतृत्व कर रहे हैं।
याचिकाओं (Petitions) में कहा गया है कि पहचान प्रक्रिया (“burden of proof”) को व्यक्तिगत नागरिकों पर स्थानांतरित करती है, जिसके लिए 25 जुलाई, 2025 तक नए आवेदन (Fresh Applications) और नागरिकता के दस्तावेजी साक्ष्य (Documentary Evidence of Citizenship) की आवश्यकता होती है। उनकी दलील है कि बिहार (Bihar) में प्रवासन (Migration) और गरीबी (Poverty) की उच्च दर को देखते हुए, दशकों पुराने दस्तावेजों की ऐसी आवश्यकताएं लाखों लोगों को मताधिकार से वंचित (Disenfranchise Millions) कर सकती हैं। राजनीतिक दल (Political Parties), विशेष रूप से कांग्रेस (Congress), आरजेडी (RJD) और बिहार (Bihar) में सत्तारूढ़ भाजपा (Ruling BJP) के विरोधी, सभी ने आरोप लगाया है कि इससे बड़ी संख्या में योग्य लोगों को हटाया जा सकता है। बिहार बंद (Bihar Bandh) के आह्वान के साथ कांग्रेस और आरजेडी के क्रमशः राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने इस कवायद के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।