Kurukshetra Public Health Department: हरियाणा में सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI Act) के तहत जानकारी मांगने वाले एक व्यक्ति को उस समय चौंकाने वाला अनुभव हुआ, जब उसे कुरूक्षेत्र के जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग से 40,000 पन्नों के दस्तावेज मिले। हैरानी की बात यह है कि आरटीआई दायर करने वाले व्यक्ति का दावा है कि इन विशाल दस्तावेजों का एक बड़ा हिस्सा उसके मूल सवालों से बिल्कुल ही अप्रसांगिक है। यह मामला सूचना के अधिकार के दुरुपयोग या अधूरी जानकारी का एक क्लासिक उदाहरण बन गया है, जो सरकारी पारदर्शिता पर गंभीर सवाल उठाता है।
कुरुक्षेत्र निवासी पंकज अरोड़ा ने आरोप लगाया है कि उन्हें आरटीआई एक्ट के तहत जानकारी देने में जानबूझकर देरी की गई और जानकारी अधूरी व अप्रासंगिक रूप से दी गई। उन्होंने इस साल फरवरी और मार्च में कुरूक्षेत्र के जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग में ₹80,000 का भारी शुल्क भी जमा कराया था, जो प्रतिलिपि शुल्क के रूप में ₹2 प्रति पृष्ठ के हिसाब से 40,000 पन्नों के लिए लिया गया था।
कैसे शुरू हुआ मामला? अधिकारियों की लापरवाही या जानबूझकर देरी?
अरोड़ा ने पहले ही हरियाणा राज्य सूचना आयोग (Haryana State Information Commission) का रुख किया था, जिसमें आरटीआई अधिनियम के तहत जानकारी देने में देरी और अपूर्ण खुलासे का आरोप लगाया गया था। उनकी अपील के बाद, विभाग ने इस साल 5 जून को उन्हें भारी भरकम दस्तावेज – लगभग 40,000 पृष्ठ – उपलब्ध कराए। यह जानकारी मिलने में हुई लंबी देरी ने अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं।
30 जनवरी को दायर किया गया यह आरटीआई आवेदन विभाग के कार्यकारी अभियंता (Executive Engineer) को निर्धारित डाक ऑर्डर शुल्क के साथ प्रस्तुत किया गया था। अरोड़ा ने 15 विशिष्ट बिंदुओं पर रिकॉर्ड मांगे थे, जिनमें शामिल थे:
- 1 जनवरी 2023 से 1 जनवरी 2025 के बीच निकाले गए टेंडर का विवरण।
- ठेकेदारों को जारी किए गए लाइसेंस।
- स्थायी, संविदात्मक और आउटसोर्स श्रेणी में कर्मचारियों का विवरण।
- विभाग द्वारा अर्जित राजस्व (Revenue)।
- विभिन्न स्तरों पर परियोजना-वार व्यय (Project-wise Expenditure)।
- ठेकेदारों द्वारा जमा की गई जीएसटी का विवरण।
सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, राज्य जन सूचना अधिकारी-सह-कार्यकारी अभियंता ने 3 फरवरी को ₹80,000 के दस्तावेजी शुल्क की मांग करते हुए एक पत्र जारी किया, जिसकी गणना 40,000 पृष्ठों के लिए ₹2 प्रति कॉपी के हिसाब से की गई थी। उसी दिन, कार्यकारी अभियंता ने विभागीय कनिष्ठों को एक अलग पत्र भेजकर उन्हें निर्धारित समय के भीतर आरटीआई अनुरोध को संसाधित करने का निर्देश दिया था। इस पत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया था, “आपकी ओर से किसी भी देरी के परिणामस्वरूप होने वाले परिणामों पर ध्यान दें, आप व्यक्तिगत रूप से इसके लिए जिम्मेदार होंगे।”
अरोड़ा ने बताया, “जब मैंने फरवरी और मार्च में विभाग में ₹80,000 का शुल्क जमा करने के बावजूद जानकारी प्राप्त नहीं की, तो मुझे राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, इंजीनियर-इन-चीफ और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से अपील करनी पड़ी, जिसमें मैंने आरोप लगाया था कि अधिकारी जानबूझकर जानकारी रोक रहे थे। उच्चाधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद ही, विभाग ने इस साल जून में दस्तावेज – लगभग 40,000 पृष्ठ जिनका वजन एक क्विंटल और 8.2 किलोग्राम था – भेजे।”
अधूरे जवाब और अप्रासंगिक सामग्री का आरोप: क्या है कार्यकारी अभियंता का जवाब?
पंकज अरोड़ा का दावा है कि जो जवाब उन्हें मिला वह न केवल अधूरा था, बल्कि उसमें भारी मात्रा में अप्रासंगिक सामग्री भी शामिल थी, जिसमें “मुख्य प्रश्नों को पूरी तरह से नजरअंदाज” किया गया था। यह स्थिति सूचना के अधिकार की प्रभावशीलता पर संदेह पैदा करती है।
इन आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए, कार्यकारी अभियंता सुमित गर्ग ने बताया कि विभाग ने आरटीआई अधिनियम के अनुसार सभी जानकारी उपलब्ध कराई है और वह भी जल्द से जल्द। गर्ग ने यह भी बताया कि “आवेदक ने एक बुक डिपो के नाम पर जारी ₹10,000 का डिमांड ड्राफ्ट जमा किया है, जबकि उनके द्वारा जमा किया गया बैंक चेक एक स्कूल का है। हमने आवेदक से पुष्टि करने का अनुरोध किया है कि क्या दोनों उनसे संबंधित हैं।” अरोड़ा ने पुष्टि की कि संबंधित बुक डिपो और स्कूल दोनों उनके स्वामित्व में हैं, जिससे भुगतान संबंधी विवाद सुलझ गया है।
यह पूछे जाने पर कि उन्होंने इतनी अधिक जानकारी क्यों मांगी, अरोड़ा ने बताया, “मुझे ऐसी जानकारी मिली थी कि विकास कार्यों के निष्पादन में नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही थीं और कनिष्ठ-स्तर के संविदात्मक पदों पर भर्ती में भाई-भतीजावाद (Nepotism) किया जा रहा था।” यह मामला हरियाणा में भ्रष्टाचार उजागर करने की कोशिश का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।