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Film Review: अभिषेक बच्चन की Zee5 फिल्म ने क्या दर्शकों का दिल जीता

Published On: July 4, 2025
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Film Review: अभिषेक बच्चन की Zee5 फिल्म ने क्या दर्शकों का दिल जीता
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Film Review: “और अब, अंत करीब है, और इसलिए मैं अंतिम पर्दे का सामना कर रहा हूँ,” फ्रैंक सिनात्रा ने गाया था. लेकिन, Zee5 (ज़ी5) पर हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म ‘कालीधर लापता’ (Kaalidhar Laapata) ने एक अलग ही कहानी बयां की है. यह फिल्म एक मध्यम आयु वर्ग के व्यक्ति की कहानी है जो ‘स्मृति हानि’ (Memory Loss) से जूझ रहा है और ‘परित्याग’ (Abandonment) से बचने के लिए भागता है. इस यात्रा में वह एक अनाथ लड़के (Orphan Boy) के साथ एक ‘अद्वितीय बंधन’ (Unique Bond) बनाता है. मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) की पृष्ठभूमि पर आधारित यह फिल्म ‘परित्याग और उपचार’ (Abandonment and Healing) जैसे ‘गहरे विषयों’ (Deep Themes) को दर्शाती है, लेकिन कुछ ‘भावनात्मक पलों’ (Emotional Beats) में यह फिल्म कहीं-कहीं कमजोर पड़ जाती है.

अभिषेक बच्चन की ‘कालीधर लापता’: एक हृदयस्पर्शी कहानी की खोज

मधुमिता (Madhumita) द्वारा निर्देशित और अभिषेक बच्चन (Abhishek Bachchan) अभिनीत ‘कालीधर लापता’, उनकी अपनी तमिल फिल्म ‘केडी ए करप्पू दुरई’ (KD A Karuppu Durai) का ‘हिंदी रीमेक’ (Hindi Remake) है. जबकि ‘मुख्य कहानी’ (Core Storyline) बरकरार रहती है, हिंदी संस्करण का अपना एक ‘अलग स्वाद’ (Own Flavor) है. यह फिल्म एक ‘भूले हुए व्यक्ति’ (Forgotten Man) और एक ‘उत्साही बच्चे’ (Spirited Child) के बीच ‘अप्रत्याशित बंधन’ (Unlikely Bond) के ‘हृदयस्पर्शी चित्रण’ (Heartfelt Portrayal) में चमकती है. हालांकि, यह फिल्म कुछ जगहों पर ‘कमजोर’ (Falter) पड़ती है. कुछ दृश्यों में ‘भावनात्मक गहराई’ (Emotional Depth) की कमी महसूस होती है और ‘पटकथा की गति’ (Pacing) हमेशा स्थिर नहीं रहती. लेकिन इन ‘कमियों’ (Flaws) के बावजूद, ‘कालीधर लापता’ (Kaalidhar Laapata Movie Review) दर्शकों के दिलों को छूने में कामयाब रहती है, जिसका श्रेय बड़े पैमाने पर इसके ‘ईमानदार और प्रभावशाली प्रदर्शनों’ (Honest and Affecting Performances) को जाता है.

कहानी की शुरुआत: कालीधर का पलायन और बालू से मुलाकात

कहानी की शुरुआत कालीधर (Kalidhar) से होती है, जिसका किरदार अभिषेक बच्चन ने निभाया है. वह ‘स्मृति हानि’ से जूझ रहा एक ‘मध्यम आयु वर्ग का व्यक्ति’ (Middle-Aged Man) है. अपने ‘चिकित्सा बिलों’ (Medical Bills) से बोझिल होकर, उसके भाई-बहन उससे छुटकारा पाने की योजना बनाते हैं. कालीधर अपने भाई-बहनों को ‘कुंभ मेले’ (Kumbh Mela) में उसे ‘छोड़ने’ (Abandoning) की बात करते हुए सुन लेता है. ‘आहत’ (Hurt) और ‘अवांछित’ (Unwanted) महसूस कर कालीधर भागने का फैसला करता है. वह अपने परिवार से यथासंभव दूर जाने के लिए पहली बस में चढ़ जाता है.

कालीधर रात एक गाँव के मंदिर (Village Temple) में बिताता है, जहाँ उसकी मुलाकात बल्लू (Ballu) से होती है, जिसका किरदार दैविक भगला (Daivik Bhagela) ने निभाया है. बल्लू एक आठ साल का ‘अनाथ’ बच्चा है जिसमें जीवन के लिए ‘संक्रामक उत्साह’ (Infectious Zest) है. उनके बीच उम्र के अंतर (Age Gap) के बावजूद, दोनों के बीच एक ‘अप्रत्याशित दोस्ती’ (Unexpected Friendship) शुरू होती है, जिसकी शुरुआत में थोड़ी ‘उथल-पुथल’ (Rocky Start) होती है, बल्लू हर मोड़ पर कालीधर को परेशान करने की कोशिश करता है. हालांकि, दोनों, जो ‘परित्याग के मुद्दों’ (Abandonment Issues) से जूझ रहे होते हैं, आखिरकार एक-दूसरे में ‘सांत्वना’ (Comfort) पाते हैं.

केडी की बकेट लिस्ट: दोस्ती की गहराई

बल्लू कालीधर को ‘केडी’ (KD) का उपनाम देता है, और वह केडी की ‘बकेट लिस्ट’ (Bucket List) को पूरा करने के मिशन पर निकल पड़ता है, जिसमें शामिल हैं – ‘बिरयानी’ (Biryani) की आजीवन आपूर्ति, अभिनय (Acting), बाइक चलाना (Riding a Bike), सूट पहनना (Wearing a Suit), बारात में नाचना (Dancing in a Baraat), शराब पीना (Trying Alcohol) (देसी नहीं बल्कि अंग्रेजी वाली), और अपने पहले प्यार मीरा (Meera) से मिलना.

आप वास्तव में महसूस करते हैं कि कालीधर छोटे लड़के के लिए कितना महत्वपूर्ण हो जाता है, जब एक ‘स्पर्शपूर्ण क्षण’ (Touching Moment) में, केडी का इलाज कर रहा डॉक्टर एक परेशान बल्लू से पूछता है, “वह तुम्हारे लिए क्या है?” और बल्लू बस जवाब देता है – “सबकुछ”. बल्लू, जिसे एक बार मंदिर की सीढ़ियों पर छोड़ दिया गया था, उसे केडी में एक ‘घर’ (Home) मिलता है, और केडी को उसमें. और फिर भी, आप यह सोचे बिना नहीं रह पाते कि काश फिल्म ने हमें ऐसे कुछ और पल दिए होते, कुछ ऐसा जो उनके बीच विकसित होने वाले बंधन को पूरी तरह से दर्शाता.

मध्य प्रदेश का ग्रामीण आकर्षण और प्रदर्शन की गहराई

मध्य प्रदेश में फिल्माई गई, ‘सेट और स्थान’ (Sets and Locations) जितने ‘वास्तविक’ (Real) हो सकते हैं, उतने ही हैं, क्योंकि वे कहानी को ‘प्रामाणिकता’ (Authenticity) और ‘ग्रामीण आकर्षण’ (Rustic Charm) प्रदान करते हैं. शुरुआत में, फिल्म की गति थोड़ी ‘धीमी’ (Slow) लगती है, लेकिन एक बार जब केडी और बल्लू एक साथ आते हैं, तो फिल्म चमकना शुरू कर देती है. उनका बंधन कहानी की ‘आत्मा’ (Soul) है. यह ‘हास्यपूर्ण’ (Humorous) और ‘हृदयस्पर्शी’ (Touching) है, लेकिन केवल कुछ हिस्सों में.

अभिषेक बच्चन, एक ऐसी भूमिका में जो नाटकीय से अधिक संयमित (Restrained than Dramatic) है, एक ऐसे व्यक्ति को चित्रित करने में एक ‘उत्कृष्ट कार्य’ (Fine Job) करते हैं जो ‘खामोशी से टूटा’ (Quietly Broken) है फिर भी ‘आशा’ (Hope) पर टिका हुआ है. वह ‘स्पॉटलाइट’ (Spotlight) चुराने की कोशिश नहीं कर रहे हैं बल्कि ‘आसानी से भूमिका में फिट’ (Fits the Role with Ease) बैठते हैं. दैविक भगला के साथ उनकी ‘केमिस्ट्री’ (Chemistry) फिल्म की ‘यूएसपी’ (USP – Unique Selling Proposition) है. दैविक को देखना एक ‘आनंद’ (Delight) है. वह ‘स्वाभाविक’ (Natural), ‘अभिव्यंजक’ (Expressive) और ‘जीवन से भरपूर’ (Full of Life) हैं. उनके प्रदर्शन में कोई ‘अतिशयोक्ति’ (Exaggeration) नहीं है, जो उनके किरदार को और भी ‘विश्वसनीय’ (Believable) बनाता है.

कमियां और छूटे हुए भावनात्मक क्षण

हालांकि, फिल्म में अपनी ‘कमियां’ (Flaws) भी हैं. जीशान अय्यूब (Zeeshan Ayyub) की प्रतिभा ‘व्यर्थ’ (Wasted) होती दिखती है, और ऐसे क्षण भी हैं जब आप अपने ‘टिश्यू’ (Tissues) के साथ तैयार होते हैं, लेकिन वह क्षण आपके दिलों को छुए बिना गुजर जाता है. एक महत्वपूर्ण उदाहरण ‘रेलवे स्टेशन’ (Railway Station) पर केडी और बल्लू के बीच एक ‘हृदयस्पर्शी दृश्य’ (Heartfelt Scene) का छूटा हुआ अवसर है. यह फिल्म में अधिक ‘भावनात्मक वजन’ (Emotional Weight) जोड़ सकता था. यह एक ऐसा क्षण है जिसकी आप उम्मीद करते रहते हैं, लेकिन यह कभी नहीं आता.

फिल्म कुछ ‘विसंगतियों’ (Inconsistencies) को भी अनसुलझा छोड़ देती है. उदाहरण के लिए, जबकि कालीधर को ‘स्मृति हानि’ और ‘मतिभ्रम’ (Hallucinations) जैसी ‘गंभीर मानसिक बीमारी’ (Serious Mental Illness) से पीड़ित व्यक्ति के रूप में पेश किया जाता है, यह पहलू फिल्म के आगे बढ़ने के साथ ‘सुविधाजनक रूप से भूल’ (Conveniently Forgotten) जाता है. वह अचानक ठीक हो जाता है और बल्लू के लिए खुद कमाना भी शुरू कर देता है, बिना उसकी ‘रिकवरी’ (Recovery) के बारे में ज्यादा स्पष्टीकरण के.

फिर भी, ‘कालीधर लापता’ हमें याद दिलाती है कि जीवन हमें ‘कठिन समय’ (Tough Times) में भी ‘खुशी’ (Joy) से चौंका सकता है. और यह दिखाता है कि कैसे ‘दोस्ती आयु बाधाओं’ (Friendship Cross Age Barriers) को पार कर सकती है, हमारे ‘पीड़ादायक दिलों’ (Pained Hearts) को ‘ठीक’ (Healing) कर सकती है. यह ‘प्रेरणादायक बॉलीवुड फिल्म’ (Inspiring Bollywood Movie) ‘ओटीटी प्लेटफार्म’ (OTT Platform) पर ‘दर्शकों’ (Viewers) के लिए उपलब्ध है.

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