High Court: पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि कोई पिता या पति, पारिवारिक अदालत (family court) द्वारा तय की गई भरण-पोषण राशि का भुगतान करने में असमर्थ है, तो यह उसकी कानूनी और सामाजिक जिम्मेदारी बनती है कि वह अपनी आय बढ़ाने के लिए अधिक मेहनत करे। अदालत ने इस दलील को खारिज कर दिया कि अन्य देनदारियों (liabilities) के कारण वह पत्नी और नाबालिग बच्चों का भरण-पोषण नहीं कर सकता।
यह फैसला एक ऐसे पति की याचिका पर आया था जिसने पारिवारिक अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उसे अपनी पत्नी और दो नाबालिग बच्चों के लिए मासिक ₹24,700 का भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था। पति का तर्क था कि वह अपनी अन्य देनदारियों (जैसे ईएमआई, माँ का इलाज, आदि) के कारण यह राशि वहन नहीं कर सकता।
न्यायिक दृष्टिकोण और तर्क:
न्यायमूर्ति जसगुरप्रीत सिंह पुरी (Justice Jasgurpreet Singh Puri) ने कहा, “यदि याचिकाकर्ता उपरोक्त राशि अर्जित करने में असमर्थ है, तो यह उसका कर्तव्य है कि वह अधिक कमाए और अधिक कमाने के बाद, उसे कानून के प्रावधानों के तहत अपने बच्चों और पत्नी का भरण-पोषण करना होगा। इसलिए, याचिकाकर्ता के वकील द्वारा उठाई गई यह दलील कि वह अन्य देनदारियों के कारण उपरोक्त राशि का भुगतान करने में असमर्थ है, स्वीकार्य नहीं है और इसे खारिज किया जाता है।”
अदालत ने पति द्वारा प्रस्तुत किए गए तथ्यों को ध्यान में रखा, जिसमें बताया गया था कि वह जयपुर के एसएमएस अस्पताल (SMS Hospital) में सीनियर मेल नर्स (Senior Male Nurse) के तौर पर काम करता है और सितंबर 2024 के उसके वेतन पर्ची के अनुसार उसका मासिक वेतन ₹57,606 है। पति ने यह भी तर्क दिया था कि भरण-पोषण की राशि उसके मासिक वेतन का लगभग आधा हिस्सा है, और उसे अपनी बीमार माँ की देखभाल और ईएमआई सहित अन्य देनदारियों को भी पूरा करना है।
हालांकि, अदालत ने इन दलीलों को महत्व नहीं दिया। कोर्ट ने कहा कि पति का यह तर्क कि वह भुगतान नहीं कर सकता, अस्वीकार्य है। न्यायमूर्ति पुरी ने कहा, “याचिकाकर्ता का न केवल अपनी पत्नी और नाबालिग बच्चों का भरण-पोषण करना कानूनी और सांविधिक दायित्व है, बल्कि यह उनका सामाजिक और आर्थिक दायित्व भी है।”
भरण-पोषण राशि की औचित्यता पर अदालत की राय:
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि ₹24,700 की मासिक भरण-पोषण राशि को आज की महंगाई दर (inflationary tendencies) और लागतों (costs) को देखते हुए, भारत में कहीं से भी अधिक नहीं माना जा सकता है, विशेषकर तब जब पत्नी काम नहीं कर रही है और 8 साल और 6 साल के दो नाबालिग बच्चों की देखभाल कर रही है, जिन्हें स्कूल भी जाना होगा।
अदालत ने कहा कि पति की अन्य देनदारियां पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण से उनके कानूनी अधिकार को छीनने का आधार नहीं बन सकतीं। इस प्रकार, अदालत ने ₹24,700 प्रति माह की भरण-पोषण राशि को न तो अत्यधिक और न ही त्रुटिपूर्ण मानते हुए, पति की याचिका को खारिज कर दिया।
यह फैसला उन सभी पतियों और पिताओं के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है जो अपनी वित्तीय जिम्मेदारियों से बचने की कोशिश करते हैं। यह न्याय प्रणाली द्वारा पारिवारिक सुरक्षा और बच्चों के कल्याण को दी जाने वाली प्राथमिकता को भी दर्शाता है। यह निर्णय भारत, अमेरिका और यूके में प्रचलित पारिवारिक कानूनों के संदर्भ में भी प्रासंगिक है, जो आमतौर पर बच्चों और पत्नियों के भरण-पोषण को प्राथमिकता देते हैं।